________________
गौमूत्र लें। हरड़े को धूप में सुखाने के बाद उसे धीमी आँच पर एरण्डी के तेल में भूनिए । · जब सिक जाये, गौमूत्र की चिपचिपाहट मिट जाय तब उतार लें।
10 ग्राम गाय के घी में 10 ग्राम हींग आँच में भून लें। अब भूनी हुई हरड़े और हींग में उपरोक्त सामग्री डालकर कूट पीसकर छलनी से छान लें। अब इस छने हुए चूर्ण को अच्छी तरह खरल में घोटें । बारीक से बारीक रगड़ने से ही गुणकारी होगा। गुणधर्म : पाँचन शक्ति को सुदृढ़ बनाता है, भोजन में रूचि जगाता है, कब्ज, गैस, उदर रोगों में अत्यंत लाभदायक, वात और कफ का नाश करता है। पेट में गड़बड़ी होने पर सिर में दर्द हो तो लाभ होता है । आजकल रासायनिक खाद व कीटनाशकों के कारण भोजन विषैला हो गया है। इस चूर्ण को भोजन के साथ सब्जी, दालों में डाक खाने या नित्य सलाद में लेने से इसका विषैलापन काफी घट जाता है। इसलिए बिना रोग के भी नित्य सेवन करना अत्यंत लाभदायक है।
मात्रा : 1 से 3 ग्राम सुबह-शाम भोजन के बाद गर्म जल से ।
4. गौमूत्र हरीतकी वटी
घटक :
1 लीटर
भा. प्र. नि. भा. प्र. नि.
मूत्रवर्गः हरीतक्यादिवर्गः
50 ग्राम
1. गौमूत्र 2. हरितकी चूर्ण 'निर्माण विधि : कलईदार कढ़ाई में 1 लीटर गौमूत्र में 50 ग्राम हरितकी चूर्ण मिलाकर औटाइये। जब गाढ़ा हो जाय तब उसे चूल्हे से उतारकर अपने आप ठंडा होने देना चाहिए । फिर करछुल की मदद से खुरच कर 1/2 - 1 /2 ग्राम की गोलियाँ बनाना चाहिए। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रखें ।
गुणधर्म : समस्त उदर रोगों में लाभकारी
मात्रा : 2-2 गोली सुबह-शाम पानी से
5. गौमूत्रासव (अष्टांग हृदय )
घटक :
1. चित्रक की जड़ 100 ग्राम
2. सोंठ
3. पीपर
4. मरीच चूर्ण
5. गौमूत्र
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
100 ग्राम
100 ग्राम
100 ग्राम
4 लीटर