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पंचगव्य चिकित्सा से रोगोपचार करते
समय ध्यान रखने योग्य बातें
.. किसी भी औषधि की सफलता उसकी गुणवत्ता पर आधारित होती है। पंचगव्य चिकित्सा में गाय से ही प्राप्त चीजों का मुख्यत: उपयोग होता है, अतएव गाय कैसी हो यह फिर से दोहराया जा रहा है। 1. गाय देशी नस्ल की हो अर्थात् जिसके ककूद (hump) हो। जर्सी, रेड डेन,
होलस्टाइन फ्रीजियन आदि नहीं। 2. गाय स्वस्थ व सशक्त हो। 3. गाँव में घूमकर प्लास्टिक या कूड़ा-कचरा खानेवाली न हो। 4. गाय जंगल या गोचर में चरने जाती हो तथा हमेशा रसायनमुक्त चारा खाती हो। 5. गाय सेवा से प्रसन्न हो।
- एलोपैथी की जड़ औषधियों की तरह पंचगव्य जड़ नहीं है, वह प्राणवान व चैतन्य है, उसमें देवताओं का वास है। इसलिए उन्हें ग्रहण करते समय उनकी दिव्यता का स्मरण कर ग्रहण करें। जैसे गौमूत्र लेते समय यह विचार करें कि इसमें गंगा का वास है अर्थात् यह सृष्टि पालक भगवान विष्णु का चरणामृत है यह शीघ्र प्रसन्न होनेवाले भगवान शिव के जटा से निकली अमृत की धारा है। गाय में 33 कोटि देवता है इसलिए गौमूत्र तो 33 कोटि तीर्थो का जल है। ऐसे बार-बार नमस्कार कर शरणागति . भाव से गौमूत्र ग्रहण करने पर इसका प्रभाव भी दिव्य ही होता है। इसे सामान्य औषधि मानने पर इसका प्रभाव भी सामान्य होता है। अविश्वास या घृणा भाव से लेने पर इसका परिणाम होता भी है और नहीं भी होता। .
आगे विभिन्न रोगों का उपचार बताया जा रहा है। जब भी आप पंचगव्य का सेवन करें, तब अपनी प्रकृति, ऋतु और अवस्था का ध्यान अवश्य रखें। 1. दूध : दूध वात दोष बढ़ा सकता है, अतएव वात से पीड़ित व्यक्ति गर्म दूध में दो चम्मच घी डालकर और फेंट कर पीयें घी वातनाशक होने से दूध को सुपाँचय बना देता है। जिनकी पाँचन शक्ति बहुत कमजोर हो उन्हें दूध में आधा पानी मिला लेना चाहिए, लेकिन घी की मात्रा कम नहीं करनी चाहिए। 2. दही : दही पित्त दोष बढ़ा सकता है, चांदी के प्याले में जमा ताजा दही लेने से पित्त का शमन हो जाता है। पित्त दोष से पीड़ित व्यक्ति को दही क़ी जगह छाछ का सेवन करना चाहिए क्योंकि छाछ पित्त नाशक है। 3. घी : घी कफ दोष बढ़ा सकता है, गर्म आहार के साथ घी लेने से कफ की प्रधानता कम हो जाती है। घी के ऊपर गर्म पानी अमृत और ठंडा पानी विष के समान है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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