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मिलाकर नियमित पीना चाहिए। चरक के मतानुसार लोहे के बारीक चूर्ण को गौमूत्र में भिगोकर इसको दूध के साथ सेवन करने से पाण्डुरोग में जल्दी लाभ होता है। सेवन से पहले खूब छानना जरूरी है।
शरीर की सूजन में केवल दूध पीकर साथ में गौमूत्र का सेवन करना चाहिए। 11. . गौमूत्र में नमक और शक्कर समान भाग में मिलाकर सेवन करने से ..
उदर रोग शमन होता है। गौमूत्र में सैंधव नमक और राई का चूर्ण मिलाकर पीने से उदररोग मिटता है।
आँखों की जलन, कब्ज, शरीर में सुस्ती और अरुचि में गौमूत्र में शक्कर मिलाकर लेना चाहिए। खाज, फुन्सियाँ, विचर्चिका में गौमूत्र में आबाहल्दी चूर्ण मिलाकर पीना .. चाहिए।
प्रसूति के बाद सुवा रोग में स्त्री को गौमूत्र पिलाने से अच्छा लाभ होता है। 16. .
चर्म रोगों में हरताल, बाकुची तथा मालकांगनी को गौमूत्र में मिलाकर सोगठी बनाकर इसे दूषित त्वचा पर लगाना चाहिए। , सफेद कुष्ठ में बाकुची तथा मालकांगनी को गौमूत्र में मिलाकर सोगठी बनाकर इसे दूषित त्वचा पर लगाना चाहिए। सफेद कुष्ठ में बावची के बीज को गौमूत्र में अच्छी तरह पीसकर लेप करना चाहिए। शरीर में खुजली होने पर गौमूत्र से मालिश और स्नान करना चाहिए। कृष्णजीरक को गौमूत्र में पीसकर इसका शरीर पर मालिश और गौमूत्र स्नान करने से चर्म रोग मिटते हैं। ईंट को खूब तपाकर गौमूत्र में इसे बुझाकर, कपड़े में लपेटकर यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की सूजन पर सेंक करने से लाभ होता है। बंगला कहावत है - .. लीवराय, पिड़ाय किम्, दुख पावे, मतिहीन वैद्य।
- गौमूत्रेण, सेक, दव, सुख पावे सद्य।।। 22. कृमि रोग में डीकामाली का चूर्ण गौमूत्र के साथ देना चाहिए।
सुवर्ण, लोह वत्सनाभ, कुचला आदि का शोधन करने के लिए और भस्म : बनाने के लिए औषध निर्माण में गौमूत्र का उपयोग होता है। वह विषैले द्रव्यों का विषप्रभाव नष्ट करता है। शिलाजीत की शुद्धि भी गौमूत्र से ।
होती है। 24. चर्मरोगों में उपयोगी महामरिच्यादि तेल और पंचगव्य घृत बनाने में गौमूत्र
उपयोग में लाया जाता है। गौमाता पंचगव्य चिकित्सा