Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 54
________________ - प्रश्न यह है। हमें तय करना है, पुढारिओं को तय नहीं करना हैं। वो तो हमें और आपको उल्लू बना रहे हैं, जैसे अंग्रेज बनाते थे। 250 साल उन्होंने बनाया 58-59 साल हो गए काले अंग्रेज हमे उल्लू बना रहे हैं। वो तो गोरे अंग्रेज थे यह तो काले अंग्रेज हैं सब के सब। हाँ- कोई अंतर थोड़ी है इनमें। ऐसे ही बातें करते हैं जैसे अंग्रेज करते थे। और कभी-कभी तो शर्म भी छोड़कर बातें करते हैं। अभी वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह 8 जुलाई 2005 को लंदन गए ऑक्सफोर्ड युनिर्वसिटी में डिग्री लेने तो वहाँ भाषण दे दिया कि हमसे गलती हो गई जो हमने भगा दिया अंग्रेजों को। अगर इसको ही विश्लेषण करना शुरु करें कि एक सरदार हैं मनमोहन सिंह जो कहता हैं कि अंग्रेजों को भगाना गलती हो गई। एक सरदार था भगतसिंग जो अंग्रेजों को भगाए बिना चैन नहीं लगा। इसका संकल्प लेके बैठा था। एक सरदार मनमोहन सिंह जो अंग्रेजों को भगाने को गलती मानते हैं। अंग्रेजी शासन को भारत के लिए उपहार मानते हैं कि अंग्रेजी शासन बहुत अच्छा था जिसने हमें न्याय दिया, कानून दिया, सभ्यता दी, शिक्षा दी, टेक्नोलॉजी दी, सायन्स दी। यह सब अंग्रेजी शासन ने दिया। और एक था उधमसिंग जो मानता था कि अंग्रेज सिवाय लुटेरे और कुछ करते नहीं। यह प्रश्न जो हैं ना वो कानून का नहीं हैं मान्यताओं का प्रश्न हैं। मनमोहन सिंह की मान्यता है कि अंग्रेज बहुत अच्छे। यह तो अंग्रेजी कानून भी अच्छे है तो मनमोहन सिंह तो अंग्रेजी कानूनों को ही आगे बढ़ायेंगे ना। जिनकी मान्यता हैं वो तो वही करने वाले है। ___ आपकी मान्यता हैं चींटी नहीं मरनी चाहिए तो आप झाडू लगाते समय ध्यान रखते हैं कि नहीं रखते है। उनकी मान्यता हैं ही नहीं तो वो ध्यान क्यूँ रखेंगे। कत्ल खाने चले ना चले क्या फरक पड़ता है। तो सरकार कहाँ जाती, कानून के साथ, मान्यताओं के साथ नहीं जाती हैं, तो कानून इस तरह के हैं कत्ल होते जाएं। और अब नए-नए कानून ऐसे बनाए जा रहे हैं इसमें से एक कानून अभी थोड़े ही दिन पहले बना है। इस देश में नीति बनी हैं पहले तो पॉलिसी फिर कानून कि भारत से जो मीठ एक्सपोर्ट हो रहा है। इसको डबल किया जाए अभी जितना हम जानवर काट कर मांस बेचते हैं इसकी मात्रा दोगुनी कर दी जाए। यह पॉलिसी बनी है तो इसका अर्थ क्या हुआ। अभी तीन हजार छ: सौ कत्तल खाने.चलते हैं तो इनकी संख्या दस हजार करनी पड़ेगी। यही होगा ना तो इस पॉलिसी के तहत सोलापूर में दो कत्तल कारखाने खुलने जा रहे हैं। यह है कहानी इसी पॉलिसी के तहत नागपूर में एक कत्तल खाना खुलने . जा रहा है। इसी पॉलिसी के तहत थोड़े दिन में तुलजापूर में खुलेगा। इसी पॉलिसी के तहत अक्कलकोट में खुलेगा। फिर क्योंकि पॉलिसी तो मान्यताओं से तो नहीं चलती ना, कानून और न्याय से चलती है। न्याय की परिभाषा वो नहीं जो हमारी मान्यता वाली है। न्याय की परिभाषा वो जिसको लॉ कहते है। जस्टीस नहीं, लॉ अलग है, जस्टिस गौमाता पंचगव्य चिकित्सा . 53 ................

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