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1. पुनर्नवा . . . . 100 ग्राम द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय मूत्रलादिवर्ग 2. गोखरू की जड़ 50 ग्राम द्र. गु. वि. 682 3. उपलसरी की 50 ग्राम . द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय जड़ (सारिवा)
- रक्त प्रसादन 4. नीम के पत्ते 25 ग्राम . द्र.गु. वि. . 57 द्वितिय अध्याय 5. गुलबेल (गुडूची) 25 ग्राम द्र. गु. वि. नवमअध्याय 342 6. दारूहल्दी 25 ग्राम द्र. गु. वि. षष्ठ अध्याय 222 7. दूर्वा
25 ग्राम द्र. ग. वि. सप्तम अध्याय 242 8. कंकोल - 10 ग्राम द्र. गु. वि. अष्टम अध्याय 274 . १. गौमू. . 3.2 लीटर भा. प्र. नि. मूत्रवर्गः निमार्ण विधिः सभी घटक बारीक कूट पीसकर छानकर गौमूत्र में डालकर आसवन यंत्र द्वारा 1/2 भाग अर्क निकालें। अर्क को छानकर काँच की बोतल में भरकर बोतल को हवाबंद करना चाहिए। गुणधर्म : यकृत व गुर्दे की बीमारियों में विशेष लाभदायक। मूत्र विरेचक, शरीर में आई सूजन को दूर करता है। पुनर्नवादि वटी के साथ लेने पर पूरा लाभ मिलता है। मात्रा : 2-2 चम्मच सुबह-शाम या वैद्यकीय सलाह के अनुसार।
9: गौमूत्र पुनर्नवादि वटी
घटक : 1. पुनर्नवा की जड . 100 ग्राम द्रव्य गुण विज्ञान अष्टम अध्याय 267 2. गोखरू की जड 50 ग्राम द्र. गु. वि 3. उपलसरी की. 50 ग्राम द्र. गु. वि अष्टम. अध्याय 363 • जड़ सारिवा 4. नीम के पत्ते 25 ग्राम
द्वितिय अध्याय 57 5. गुलबेल-गुडूची 25 ग्राम
नवम अध्याय 342 6. दारूहल्दी 25 ग्राम
षष्ठ अध्याय 222 7. दूवा
25 ग्राम द्र. गु. वि सप्तम अध्याय 242 8. कंकोल
10 ग्राम द्र. गु. वि अष्टम अध्याय 274 9. गौमूत्र
1/2लीटर द्र. गु. वि. मूत्रवर्ग : निर्माण विधि : सभी घटक बारीक कूट पीसकर कपड़छान कर गौमूत्र के साथ कढ़ाई मे डालकर मंदाग्नि में औटाकर गाढ़ा बनने दें। फिर अपने आप ठंडा होने पर 1/2 - 1/2 ग्राम की गोलियाँ बनायें। नमी से बचाने के लिए गोबर की राख तथा शुद्ध गैरीक को अनुमान से मिलाकर उसमें गोलियों को लिपटाकर प्लास्टिक की डिब्बी में रख गौमाता पंचगव्य चिकित्सा