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सोलापूर में ही बोलने की जरुरत नहीं हैं। इस बात को भारत सरकार के स्तर तक बोलना है। हम आपको हर साल सात लाख पचास हजार कोटी रुपये टैक्स में भरते हैं। इसके लिए नहीं कि आप ट्रान्सपोर्ट बढ़ाए इस देश का । हम नहीं चाहते कि भारत से मांस का निर्यात हो, हम चाहते हैं कि भारत से दया, करुणा, प्रेम, निर्यात हो । जो हजारों साल हमने किया है। हमारी भारतीय संस्कृति और सभ्यता में जितने भी महान लोग आये हैं। उन्होंने भारतीय सभ्यता का निर्यात किया है। मांस का निर्यात नहीं किया है और सीधे-सीध प्रश्न करना है कि महात्मा गांधी के दांडी मार्च के सत्याग्रह की अगर जयंती आप मनाते हो तो किस मुँह से यह कत्ल कारखाने खुलवाते हैं या तो यह पाखंड बंद करो, गांधीजी के मार्च का सत्याग्रह का, जयंती बनाने का और सबको कहो कि हमने गांधीजी को दफन कर दिया है और या गांधीजी को मानते हो तो उनके जीवन की सबसे महत्त्व कि बात हैं कि कत्तल खाना कलम की नोक से बंद होना चाहिए। उसका पालन करो या तो लोगों से कहो कि हमने गांधीजी को छोड़ दिया है। तो हिन्दुस्तान के सब नोटों से गांधीजी की तस्वीर मिटाओ। सभी डिग्री कॉलेज, मेडिकल्स कॉलेज, इंजिनिअरींग कॉलेज से गांधीजी की फोटो हटाओ। हिन्दुस्तान के ऑफीसर के जो बड़े-बड़े कक्ष हैं वहाँ से गांधीजी को हटाओ। हिम्मत है तो करो और कहो सबको कि हमने गांधीजी को भुला दिया है। नहीं मानते उनको, और यह हिम्मत नहीं है तो कम-से-कम पाखंड तो मत करो। यह तीखे प्रश्न समाज में आने चाहिए और यह इस लिए की हमारी सभ्यता की लड़ाई है। अस्मिता की लड़ाई है। यह व्यक्तिगत नहीं हैं। राजनीतिक नहीं है। यह सभ्यता का प्रश्न है। यह मान्यता का प्रश्न है। किसी भी राजनीति से बड़ा है ।
भारतीयता में अगर मैं राजनीति को परिभाषित करूँ तो राजनीति के बारे में आप मन में एक छोटा सा कहीं कॉर्नर में बिठा लीजिए कि राजनीति सिर्फ टॉयलेट रुम जैसी ही है इससे ज्यादा कुछ नहीं । घर में टॉयलेट रुम होता है ना, लेकिन पुरा घर टॉयलेट रुम नहीं हो सकता। घर का एक छोटा सा कोना टॉयलेट रुम होता है। जिसमें दस पंद्रह मिनट हम बैठ सकते है। इससे ज्यादा नहीं। राजनीति भी वहीं तक है। क्योंकि उसके आगे भी तो बहुत कुछ है। किचन है। डायनिंग रुम है। ड्राईंग रूम है। बेडरूम है। वो महत्त्व के हैं। टॉयलेट रुम नहीं। पंद्रह मिनट के लिए है बस । तो • राजनीति भी उतनी ही है। इसको इससे ज्यादा सर पे मत चढ़ाए। नहीं तो तकलीफ करेगी आपको। राजनीति को हमने जरुरत से ज्यादा सर पे चढ़ा लिया हैं। और इतना चढ़ा लिया हैं। हर छोटे बड़े काम में किसी न किसी पुढारी को पकड़ के लाते है । हाँमंदिर का उद्घाटन वो पुढारी करता है जो जिंदगी भर बलात्कार करता रहा। जिसने दूसरों के घर जलाए हैं। जिसने दूसरों के घरों में चोरिया लगाई हैं। वो मंदिर का उद्घाटन कर रहा है। राम कथा का उद्घाटन वो पुढारी करता हैं जो चरित्र में बिलकुल रावण
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा