Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 60
________________ से भी गया बीता है। कृष्ण कथा का उद्घाटन वो पुढारी करता है जो कंस से भी दस फीट नीचे है नैतिकता में और चरित्र में। हमने सच में इनको सर पे चढ़ा रखा है। हर छोटे बड़े काम में इनके आगे पीछे घूमते रहते हैं, आइये जी हमारे यहा उद्घाटन हैं। कहाँ फंस गए आप इनके चक्कर में। इसलिए मैंने बहुत गंभीरता से सोच-विचार कर के कहा है। पुढारी और पॉलिटिक्स माने टॉयलेट रुम, घर की जरुरत है। लेकिन पूरा घर वो नहीं है थोड़ा सा हिस्सा है। उतना ही भर रखिए उसको उतना भर रखेंगे। तो यह सीधे रहेगे और एकदम चलते रहेगे आपके कहने पर। जो आपने सिर पे बिठा लिया। अगर पूरा घर टॉयलेट बना लिया तो क्या होने वाला है घर छोड़ के जाना पड़ेगा आपको। इसलिए ज्यादा इनको सिर पर मत चढाइए और ज्यादा इनको इस तरह से तबज्जो मत दीजिए। हर समय उनके आगे पीछे माला लेके खड़े हो जाना। हम जानते हैं कि चरित्र से बहुत घटिया हैं। बेईमान है, चोर है, लुच्चा है, लफंगा है, लंपट है फिर किस लिए मालाए लेके खड़े हो उसके सामने। जब जानते हैं, नहीं जानते तब बात अलग है। आपको मालूम है सबकुछ खुला है आपके सामने उसका। फिर इतना क्यूँ तबज्जो देना थोड़ा स्वाभिमानी · तो बनिए। भारत के लोग तो स्वाभिमान के लिए गर्दन कटा देते हैं। स्वाभिमान नहीं छोड़ते। हमने इतना छोड़ दिया हैं तो जब आप थोड़े स्वाभिमान से आत्मसम्मान से खड़े होने लगेगें तो यह पॉलिटीशन आपकी इज्जत करने लगेंगे। जब इनके सामने आप गिड़गिड़ाते और रुलाते हुए खड़े रहे तो आपके सिर पर चढ़के बैठेंगे। इसलिए उनको उनकी जगह पर रहने दीजिए। आप अपनी जगह तलाशिए और समाज में इस प्रश्न को, कत्लखाने के प्रश्न को, भारत की सभ्यता और अस्मिता का प्रश्न बनाइए। सिर्फ कत्लखाना रोकने तक यह सीमित नहीं है। यह लढाई बहुत बड़ी है। गांधीजी जिसको लड़ना चाहते थे आजादी के बाद वह अधुरी है। इसको पूरा करने का काम हमें करना हैं। गांधीजी इस प्रश्न को पूरी सभ्यता के साथ जोड़कर देखते थे। वो कहते थे कि यह प्रश्न अंग्रेजियत का है। इससे कम नहीं हैं कुछ भी। तो आज भी अंग्रेजियत का प्रश्न हमारे सामने है। इसमें जो छोटे-छोटे प्रश्न आयेगें। उनका समाधान आप करिए। जैसे थ्योरी ऑफ युटीलिटी की बात मैंने कही- बीमार हैं, अपंग है, लुले-लंगड़े पशुओं उनका क्या करना कहिए। हम संभालेगे आप क्यूँ चिंता कर रहे हैं उनकी। हर एक पशुओं का मूत्र और उसका शेण (गोबर) यहीं एक्कट्ठा करे तो साल की लाख रुपये की इंकम है। मैंने आप से कहा इसको हम सिद्ध कर चुके हैं ऐसे ही नहीं कह रहे है। फिर कोई लोग कहेंगे कि कत्तलखाना तो बन गया हैं 40 प्रतिशत पूंजी लग गई है। बहुत बड़ी बिल्डिंग खड़ी हो गई है तो क्या-बन गई है तो उसका दूसरा कोई उपयोग हो सकता है। क्या उपयोग हो सकता है। जहाँ कत्लखाना हो गौमाता पंचगव्य चिकित्सा 59 ALHI

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