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आपत्ती नहीं हैं आप कानून बनाइए। तभी एक महिला खड़ी हो गई उसका नाम है सुश्री ममता बॅनर्जी। उसने कहा गाय का मांस खाना मेरा मौलिक अधिकार है। उसका क्या होगा? और ममता बॅनर्जी ने सुप्रीम कोर्ट के एक डिसीजन को कोट कर के बोलना शुरु किया कि कोई कसाई गाय का कत्तल करता है। यह उसका मौलिक अधिकार है। उसका क्या होगा यह सुप्रीम कोर्ट का जजमेन्ट है। तो मामला बनते-बनते होते-होते फिर फिसल गया। इसी तरह से एक बार और हुआ हमारी संसद में । सब तय हो गया कि गौरक्षा का बिल पास हो ही जाना चाहिए। एक महामहिम भारत देश में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े हुए व्यक्ति जी. जी. वैल खड़े हो गए। कि मैं गाय का मांस खाता हूँ मेरा क्या होगा। तो मैंने उनको एक खत लिखा था। जिसका जवाब उन्होंने नहीं दिया। मैंने कहा आप गाय का मांस खाते है खाते रहिए। अपने घर में कांटे, यह कत्तल खाने तो बंद हो जाने दीजिए। आपको गाय का मांस खाना है आप अपने घर में कत्ल करिए, काटिए, उसे खाईए। आपमें हिम्मत है तो आपके घर में काटिए खाईए। आपके बीबी - बच्चे भी आपको देखे उसको कांटते हुए, खाते हुए, पड़ोसी भी देखे कांटते हुए, खाते हुए। और अगली बार आप राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़े तो सबको पता तो चले कि ऐसा व्यक्ति देश में राष्ट्रपति बनना चाहता है। जवाब नहीं दिया उसके बाद। क्योंकि इस तर्क में क्या बुराई है। आपको गाय का मांस खाना है, ठीक है। घर में काटिए, खाईए। यह कत्ल खाने क्यों चाहिए आपको यह तो आपके मांस की सप्लाई नहीं करते यह तो एक्सपोर्ट करते हैं।
आजादी के 58-59 सालों में संसद में चार बार गंभीरता से गौरक्षा पर बहस हुई है। प्रस्ताव पारित होने को आया है। वह करने तक नौबत आयी है। लेकिन किसी न किसी कारण वो अटकता गया है। कभी पंडित नेहरू के इस्तीफा देने की धमकी के कारण कभी हमारे देश में सुश्री ममता बॅनर्जी जैसे खासदारों के यह कहने के कारण कि मैं गाय का मांस खाती हूँ मेरे मौलिक अधिकार क्या होगा, कभी जी. जी. रवैल के कारण। और कभी सबेरे विधेयक पेश किया और शाम को बहस करेगें दुबारा यह श्री. अटल बिहारी वाजपेयी के बयान के कारण। हर बार यह हुआ है।
मैंने इसको समझने की कोशिश की है कि आखिर गाय की रक्षा में ऐसा कौन-सा प्रश्न है या जानवरों की रक्षा में ऐसा कौन-सा प्रश्न है जो भारत की संसद इसको होने नहीं देना चाहती या भारत की संसद में ऐसे कुछ लोग हैं। मित्रोखिन के शब्दों में अगर कहे जिनके चेहरे कुछ हैं मुखोटे कुछ हैं। तो हम ढूंढना शुरु करें हमारे नजदीक में ऐसे कितने पॉलिटिशन हैं, खासदार हैं, आमदार हैं जिनके चेहरे कुछ हैं मुखोटे कुछ हैं। ढूँढे हम, कम से कम अपने बीच में खोजना तो शुरु करें ताकि यह गंभीर प्रश्न आज नहीं तो कल हल हो सके। क्योंकि हल करना ही पड़ेगा। इस प्रश्न
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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