Book Title: Gaumata Panchgavya Chikitsa
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan

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Page 39
________________ हो गए और गाय बचाने में लग गए तो हमारी सरकार नहीं चलेगी भारत में । इसलिए तुम एक काम करो कि जितने कत्तल खाने चल रहे हैं गाय काटने के लिए, उनमें मुसलमानों की भरती कर दो और हिन्दुओं को बताओ कि गाय को मुसलमान काट रहे हैं, तो हिन्दुओं की भरती नहीं मुसलमानों की भरती कर दो। हिन्दुओं को बताओ. कि गाय मुसलमान काट रहे हैं। कट हमारे लिए रही है । काट रहे हैं मुसलमान, खाते नहीं हैं, हम खा रहे हैं। यह जब हिन्दुओं को पता चल जायेगा तो यह दोनों एक दूसरे से लड़ मरेंगे और ये लढ़ने लगेंगे तो हमारी गद्दी सुरक्षित रहेगी और हम भारत पर एक हजार वर्ष तक राज करेंगे। यह व्हिक्टोरिया की चिट्ठी हैं लेन्स डाऊन को 1894 लिखी गई। इस चिट्ठी को पढ़कर मेरी समझ में आ गया पॉलिटिक्स क्या है इस देश की। पॉलिटिक्स यह है कि गाय कटे अंग्रेजों के लिए, और लढ़ते रहें हिन्दु, मुसलमान। हम एक दूसरे को गाली देते हैं, एक दूसरे की टांग खिचाई करते रहें और अंग्रेज मजा करते रहे। इस तरह से अंग्रेजों ने वो एक पॉलिसी है ना 'बाँटो और राज करो' (Divided.And Rule) में हमको फंसाया, गाय को कटवाया और एक दो नहीं करोड़ों गाय को कटवाई। इस देश में एक कत्तल खाना जो कलकत्ता से शुरु हुआ धीरे-धीरे भारत के हर कॅन्ट एरिया में फैल गया। साढ़े तीन सौ कॅन्ट एरिया अंग्रेजों ने स्थापित किये। साढ़े तीन सौ कत्तल खाने बना दिए । गांधीजी इन्हीं की खिलाफत करते थे। अंग्रेजों के जमाने में गांधीजी को बार-बार लगता था कि यह कत्तल खाने बंद होने चाहिए। गांधीजी के पहले एक और महान व्यक्ति हुए इस देश में, जिनको बहुत पीड़ा होती थी इन कत्तल खानों के चलने से। उनका नाम था 'स्वामी दयानंद सरस्वती' । जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की । उन्होंने तो अपने जीते जी एक फौज तैयार कर दी 'गौरक्षा' के लिए। स्वामी दयानंद सरस्वती ने एक संघटन बना दिया जिसका नाम था 'आर्य समाज' आज तक जीवित 'हैं। सवा सौ वर्ष पुराना संघटन है। कॉंग्रेस से भी पुराना संघटन | कॉंग्रेस जो राजनैतिक दल है ना, उससे पहले का है यह आर्य समाज । इसका एक ही काम था गौरक्षा करना । और इस आर्य समाजी संघटन ने पूरे देश के नौजवानों को ऐसा चार्ज कर दिया था कि • भारत के सात लाख बत्तीस हजार गांव में हर जगह गौरक्षा समिती बन गई। 1870 से यह शुरु हुआ और 1894 में आ कर यह आंदोलन अपने सबसे उच्चतम शिखर पर था। और 1894 में जब यह आंदोलन उच्चतम शिखर पर था तो भारत के हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध सब मिलकर गौरक्षा में लगे हुए थे। और अंग्रेजों के सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया कि एक भी गाय कटेगी तो अंग्रेजों की खैर नहीं तो अंग्रेज घबरा गये थे। इसी घबराहट में रानीने चिट्ठी लिखी थी 1894 में। कि अगर इस आंदोलन को तोड़ना है, हिन्दु-मुसलमानों को लड़ाना है तो तुम यह काम करो की सारे कत्तल खानों में मुसलमानों की भरती करो और हिन्दुओं को यह बताओ गौमाता पंचगव्य चिकित्सा 38

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