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पी. एल.- 480, (PL 480) यह अमरीका का एक कानून है। पी. एल. याने पब्लिक लो, पब्लिक लो फोर एट जिरो का एक ऍग्रीमेन्ट था। जिसके तहत अमरीका से गेहूँ भारत में आता था। शास्त्रीजी ने प्रधानमंत्री बनते ही वो गेहूँ लेना बंद किया था। और उनका कहना था कि अमरीका से घटियाँ क्वालिटी का गेहूँ खरीदकर खाना, उससे अच्छा है भुखे मर जाना। जिस समय उन्होंने अमरीका का गेहूँ खरीदना बंद किया था। उस समय भारत बहुत गंभीर परिस्थिति में फंसा हुआ था। पाकिस्तान से हमारा युद्ध चल रहा था । और युद्ध के समय आप जानते हैं अर्थव्यवस्था बहुत नाजूक दौर में होती है । कोई भी बड़ा फैसला करने की हिंमत सामान्य रुप से प्रधानमंत्रियों में नहीं होती है। लेकिन शास्त्रीजी ने हिंमत की और युद्ध के दौरान अमरीका को कह दिया कि हमें गेहूँ नहीं लेना है। तो अमरीका ने थोड़ी धमकी दी कि अगर आप हमारा गेहूँ नहीं खायेंगे । तो आप भूखे मर जायेंगे। तो शास्त्रीजी ने कहा ठीक है। हमें भुखे मरना आता है। बनिस्वत कि अपमान के साथ अमरीका का गेहूँ खाना और उस समय जब गेहूँ लेना बंद किया तो भारत में गेहूँ की कमी हो गई। तो शास्त्रीजी ने लाखों-करोड़ भारत वासियों से अपील की कि सप्ताह में एक बार व्रत रखना शुरु कर दो। करोड़ों भारत वासियों ने उनकी इस अपील का स्वागत किया और कोटि-कोटि भारतवासियों ने व्रत रखना शुरु कर दिया। अभी भी इस देश में लाखों भारतवासी हैं जो सोमवार को खाना नहीं खाते। क्योंकि शास्त्रीजी ने सोमवार को यह कसम दिलवाई थी। .
यह दो प्रधानमंत्री बहुत अच्छे हुए इस देश में। लेकिन दुर्भाग्य दोनों का यह था कि किसी की भी सरकार पाँच साल के लिये नहीं चली। शास्त्रीजी की सरकार पाँच साल नहीं चल पाई। मोरारजी देसाई की सरकार पाँच साल नहीं चल पाई। जो यह दोनों पाँच साल चल गये होते तो आज यह कल्ल खानों का प्रश्न हमारे सामने नहीं होता । मोरारजी देसाई ने तय किया हुआ था कि वो तीन प्रश्नों को हल करेंगे। शराब बंदी का, कत्ल खानों का और भारत देश में गरीबी, बेरोजगारी का । लेकिन आप जानते हैं कि 22-23 के महीने बाद ही उनकी सरकार गिर गई। शास्त्रीजी की सरकार तो 18 महीने के बाद चली गई। क्योंकि उनकी हत्या हो गई। वो गये थे ताश्कंद । एक समझौता पाकिस्तान से दोस्ती का करने के लिए लेकिन वो जीवित वापस नहीं लौटे। तो इन दो प्रधानमंत्रियों ने पूरी ईमानदारी के साथ इस देश में गांधीजी के विचार जीवित करने का प्रयास किया बाकी किसी ने नहीं किया। अपने को महात्मा गांधी का सबसे अच्छा शिष्य बताने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरु ने गांधीजी के सपनों का एक प्रतिशत हिस्सा भी इस देश में पूरा नहीं किया। गांधीजी और पंडित जवाहरलाल नेहरु के विचारों में बहुत मतभेद था। लेकिन गांधीजी की यह महानता थी कि उन्होंने उस मतभेद को कभी जनता के सामने नहीं लाया। अगर बोल दिया होता तो पंडित नेहरु प्रधानमंत्री कभी नहीं बन पाते। 1937 का लिखा हुआ महात्मा गांधी का एक पत्र है पंडित
गौमाता पंचगव्य चिकित्सा
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