________________
गाथा परम विजय की
जम्बूकुमार-मां! अभी बताऊं?' 'हां बताओ।'
'बड़ी बात वह होगी, जिस दिन मैं परम विजयी बनूंगा, परम विजय को उपलब्ध करूंगा। मैं महावीर का शिष्य हूं। महावीर की उपासना में जाता हूं। आप सब भी जाते हैं। मैंने महावीर को समझने का प्रयत्न किया है, उनके सिद्धांत को जीने का संकल्प किया है। जिस दिन मैं महावीर का सही शिष्य बनूंगा यानी महावीर बनूंगा तब कोई बड़ी बात होगी।'
मां-बेटा! ये सब बातें रहने दो।' यश की बात तो मां सुनना चाहती थी। ये बातें वह सुनना नहीं चाहती थी। बात संपन्न हो गई।
जम्बूकुमार की अंतरात्मा में एक लक्ष्य बना हुआ है। हम मनुष्य के जीवन पर ध्यान दें। मनुष्य कोई भी प्रवृत्ति करता है, तो बाहर में प्रवृत्ति दिखाई देती है किन्तु भीतर में एक केन्द्रीय लक्ष्य होता है। उसकी सारी प्रवृत्तियां उसी लक्ष्य के आसपास चलती हैं। दूसरों को आश्चर्य होता है इतना बड़ा आदमी, ऐसी प्रवृत्ति क्यों कर रहा है? इतना बड़ा आदमी, संयम क्यों कर रहा है? त्याग क्यों कर रहा है?
जम्बूकुमार ने सोचा-हाथी को वश में करके मैंने कोई बड़ी सफलता नहीं पाई है। मुझे सफलता के लिए स्वयं पर विजय पाना है। मुझे इसमें सफल होना है। मैं सफल बनूंगा। भीतर ही भीतर यह लक्ष्य पल रहा है।
राजगृह में पूरे दिन यही चर्चा रही। राजपथ, चौराहे, चौहट्टा-कहीं भी जाओ, एक ही चर्चा आज तो जम्बूकुमार ने गजब कर दिया। जहां सारे सैनिक परास्त हो गए, वहां निहत्थे जम्बूकुमार ने हाथी को वश में कर लिया। कैसे हो गया यह? कितना बड़ा आश्चर्य है यह!
दिन बीता, रात बीती, सूर्योदय हुआ। सूर्योदय एक आश्चर्य की रश्मि लेकर सामने आया। सबने आवश्यक प्रभात-कृत्य किए।
दस बजे का समय। राज्यसभा का आयोजन। सब सामंत, सभासद आ गए। सम्राट श्रेणिक ने जम्बूकुमार को आमंत्रित किया। राजपुरुष जम्बूकुमार के घर गए, निवेदन किया-'सम्राटप्रवर आपको याद कर रहे हैं। आप राजसभा में पधारें।' बहुत सम्मान और उत्सव के साथ राज्यसभा में लाया गया। जम्बूकुमार न कोई मंत्री था, न सामंत था, न राजसभा का सदस्य। वह कल तक अनजाना था, आज सर्व जाना हो गया। एक दिन में एकदम प्रसिद्ध हो गया।
__ प्रसिद्धि विजय दिलाती है। जो प्रसिद्धि सहज अपने गुणों से मिलती है, वह अच्छी होती है। संस्कृत कवि ने लिखा-उत्तम आदमी अपने गुण से प्रसिद्ध होता है। यह अमुक का बेटा है-इस प्रकार पिता के नाम से जो प्रसिद्धि पाता है, वह मध्यम आदमी है। जो अपने मामा के नाम से प्रसिद्धि पाता है, वह अधम है। जो अपने श्वसुर के नाम से प्रसिद्ध होता है, वह अधमाधम है।
उत्तमः स्वगुणैः ख्यातः, पितृख्यातश्च मध्यमः। अधमः मातुलैः ख्यातः, श्वश्रुख्यातोऽधमाधमः।।