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का जयघोष किया जा रहा है। ऐसा लगता है जैसे कोई महायुद्ध में विजय हुई है। उस विजय का जो उल्लास होता है, जो वीर रस के गीत गाए जाते हैं, वैसा कुछ माहौल बन गया। चारों ओर विजय गान हो रहा है।
__उस उत्सव और समारोह के मध्य जम्बूकुमार माता-पिता के साथ अपने घर पहुंचा, परिवार के लोग इकट्ठे हो गए। मां बोली-वत्स! कुशल तो हो? उस दुर्दान्त हस्तिराज को तूने वश में किया। उसके साथ कोई प्रहार हुआ होगा। दिखाओ तो जरा हाथ। कहीं कोई खरोंच तो नहीं आई है? कुछ चोटें बाहर दिखाई देती हैं, कुछ अंदरूनी होती हैं। कहीं कोई चोट तो नहीं आई है?'
कुशलं ते तनो वत्स! निघ्नन्तो वद यूथकम्।
इति केचित् कुमारं तं, स्पृशंतो मृदुपाणिना।। मां का वात्सल्य, मां के मन की पीड़ा, साथ-साथ में हर्ष-सब अपना काम कर रहे हैं।
जम्बूकुमार बोला-मां! चिंता मत करो। एक खपाची भी नहीं लगी। एक खरोंच भी नहीं आई। मैंने कुछ किया भी नहीं। मां! तुम तो जानती हो जो दूसरे से लड़ता है, उसका बल क्षीण हो जाता है। जो नहीं लड़ता, उसका बल बढ़ जाता है।'
प्रसिद्ध तथ्य है। रात को कोई व्यक्ति जाता है। कभी सामने भूत मिल सकता है। उस समय भूत से लड़ो तो लड़ने वाले की शक्ति घट जाएगी, भूत की शक्ति बढ़ जाएगी। लड़ने वाला मारा जाएगा। लड़ो मत। सामने खड़े हो जाओ। डरो मत। भूत की शक्ति क्षीण हो जाएगी, सामने वाले का बाल भी बांका नहीं होगा।
'मां! मैंने हाथी पर प्रहार नहीं किया। मैंने अभय और मैत्री का प्रयोग किया, उस प्रयोग ने चमत्कार दिखाया, हाथी मेरा मित्र बन गया। उसने मुझे ऊपर चढ़ा लिया।'
'बेटा! यह हुआ कैसे? कहां तुम्हारा केले जैसा कोमल शरीर और कहां वह पहाड़ जैसा दुर्दम हाथी! तुमने उसे कैसे जीता? क्या यह सचमुच सही बात है?'-मां को भी बहुत आश्चर्य हो रहा था।
क्व ते पुत्र! वपुःसौम्यं, कदलीदलसन्निभम्।
क्व गिरीन्द्रसमो नागो, निर्जितस्तु कथं त्वया।। पुत्र-'मां! मैंने लड़ाई कहां की? यदि लड़ाई करता तो मैं हारता और वह जीतता। लड़ाई तो हुई नहीं। मैंने तो मित्र बनाया था। मित्र बनने के बाद उसने अपनी भाषा में कहा-आओ मित्र! ऊपर चढ़ जाओ। मैं चढ़ गया। लोगों ने कहा-हाथी को जीत लिया। मैंने तो कुछ किया ही नहीं।'
मां को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। एक सपना जैसा लग रहा था। कभी-कभी कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं कि आंखों से देखने पर भी भरोसा नहीं होता। आंख का काम भरोसा करना नहीं है, आंख का काम तो मात्र देखना है। जिस तंत्र का काम भरोसा करना है, उसको भरोसा नहीं होता।
जम्बूकुमार ने कहा-'मां! यह कोई बड़ी बात नहीं है, इसे तुम संपन्न करो।' मां-बड़ी बात कौन सी चाहते हो?'
गाथा परम विजय की