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बन गया। मैं उसके ऊपर चढ़ गया। उसने मुझे अपने ऊपर बिठा लिया। जहां मित्रता होती है, वहां खतरा नहीं होता। न मेरे हाथ में शस्त्र, न अंकुश। हम दोनों मित्र बन गए और हमारा काम बन गया।'
सम्राट् श्रेणिक ने सोचा-मैं भी महावीर का शिष्य हूं। महावीर के पास जाता हूं, महावीर की देशना सुनता हूं। अब मुझे अनुभव हो रहा है कि मैं केवल धर्म को सुनता हूं और कुमार उसे जीता है। ___ यदि आदमी धर्म को जीना शुरू कर दे तो बहुत बड़ा परिवर्तन संभव हो सकता है किन्तु बहुत कठिन है धर्म को जीना।
सम्राट् ने कुमार का परिचय पूछा-'नाम क्या है?' 'जम्बूकुमार। 'कहां रहते हो?' 'राजगृह में।' 'तुम्हारे पिता का नाम?' 'मेरे पिता श्रेष्ठी ऋषभदास हैं।'
जैसे चिरपरिचित के साथ लगाव होता है, कुमार के साथ वैसी आत्मीयता जुड़ गई। जब कोई अतिशय विशेषता सामने आती है तब एक आकर्षण पैदा हो जाता है।
जम्बूकुमार ने हाथी को वश में किया, जनता अपने आप वशीभूत हो गई। सम्राट् ने कहा-'अब हम नगर में चलेंगे। भव्य समारोह के साथ तुम्हारा नगर-प्रवेश कराएंगे।'
सम्राट् श्रेणिक, पूरा लवाजमा, चारों प्रकार की सेना, हजारों नागरिक एक अनायोजित जुलूस बन गया। आगे-आगे जम्बूकुमार उसी पट्टहस्ती पर आरूढ़ है। पीछे सम्राट् श्रेणिक, संभ्रांत नागरिक चल रहे हैं। नगर-प्रवेश हो गया। राजमहल आया। सम्राट् राजमहल में चले गए। जम्बूकुमार से कहा-'तुम अपने घर चले जाओ। कल विशाल सभा का आयोजन होगा, उसमें स्वागत किया
गाथा परम विजय की
जाएगा।'
माता-पिता को पता चला-जम्बूकुमार ने आज एक अद्भुत काम किया है। माता-पिता आगे आए, जम्बूकुमार को समारोह के साथ घर लाए।
जहां पुत्र की सफलता होती है, वहां मां को कितना सुख होता है और पिता को कितना आनंद मिलता है इसे वे ही अनुभव कर सकते हैं, दूसरा नहीं जान सकता। __आज पूरे नगर में जम्बूकुमार की यशोगाथा हो रही है। 'जसु जसु वीर रसु जय हो'-वीर रस
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