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विषयसूची
विषय
श्लोकाऊक
दान के योग्य व्यक्ति दिगम्बर साधुओं को श्रेष्ठता पात्र में दिया दान पुण्य का कारण अपात्र में दिया दान व्यर्थ ज्ञान और तप से संपन्न देव के समान आदर के प्रकार जिनेन्द्रमत के आधार मुनियों के चार प्रकार दान के प्रकार और उनका फल मौन से भोजन करना विनय का माहात्म्य मुनियों के रोगों का प्रतिकार करना मनियों की उपेक्षा से धर्महानि श्रुतकेवली श्रुतज्ञान का माहात्म्य आगमज्ञान से संपन्न मनुष मन को वश करना आवश्यक है सम्यग्ज्ञान के बिना बाह्य क्लेश व्यर्थ स्वरूपादिकों की द्विविधता मुनीश्वरभक्ति का फल अतिथिदान के अतिचार आरम्भकार्य में अनुमति देने से पाप श्रावकों के भेद उद्दिष्टत्यागी श्रावक का फल उद्दिष्टाहार की अभिलाषा का परिणाम
३६ ३७-३८ ३८.१ ३८*२-३९१ ४० ४०५१ ४२-४३ ४३२१-५ ४४-४९ ४९.१-२ ५० ५०*१-५१ ५१*१-५२
५४
५५ ५५*१-५७ ५७*१-५८ ५८*१
५९
५९२१
६७, ७३ ६८-६९, ७२ ७०-७१
१९. सल्लेखना का वर्णन
सल्लेखना धारण करना
१-११,११-११.२ ११११
सावधानता की जरुरी चारित्र को नहीं छोडना सल्लेखनापूर्व अनुष्ठान मक्ति के लिये रत्नत्रयपालन आत्मा का संरक्षण करना सल्लेखना का चिन्तन सल्लेखना से आत्मघात नहीं
४-८ ९-१० . ११३ ११४-५