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994 ) तदुक्तम्
- धर्म रत्नाकरः
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निहत्य निखिलं पापं मनोवाग्देहदण्डनैः । करोतु निखिलं कर्म दान पूजादिकं ततः ।। २३१
[ १२• २३*१
995 ) ममाप्रवृत्तेविरति 'ः समग्रे बाह्यान्तरङ्गे ऽपि कृतक्रियः सन् । संस्मृत्य नामानि महागुरूणां निद्रादि कुर्याद्विधिना रजन्याम् ॥ २४ 996 ) दैवादायुर्यदि विगलितं स्यादमुष्यां' रजन्यां प्रत्याख्यानप्रजनितफलं स्यात्तदा तन्निवृत्तेः । भोगैः शून्यं व्रतविरहितं वाहयेत्तन्न काल एतावद्यत्पशु मनुजयोरन्तरं सूरिगीतम् ॥ २५ 997 ) छेदनेताडनबन्धा भारस्यारोपणं समधिकस्य ।
पानान्नयोश्च रोधः पञ्चाहिंसात्रतस्येति ।। २६ । अतिचारा इति शेषः । 998 ) देवतार्थमपि मारयन्नजं ' वारसप्तकमभूदजो सुखी । ग्रामणीरिति सदैव यः पुनहिंसकः कथमसौ मुमुक्षते ॥ २७
मन, वचन, और शरीर के निग्रह से सब पापोंको नष्ट करके तत्पश्चात् दानपूजनादिक कार्य को करना चाहिये ।। २३९ ॥
बाह्य और अन्तरंग सब ही विषय में जब तक मेरी प्रवृत्ति सम्भव नहीं है, तब तक के लिये मैं उस सब से विरत होता हूँ- उसका त्याग करता हूँ - इस प्रकार की प्रतिज्ञा करके महान् गुरुओं के नामों का स्मरण करते हुए रात्रि में विधिपूर्वक निद्रा आदि करना चाहिये ॥ २४ ॥ कारण यह कि दैवयोग से यदि इस रात में मेरी आयु समाप्त हो गई- मरण हो गया तो जो विषयत्याग मैंने किया है उस से उत्पन्न हुआ फल मुझे प्राप्त होगा । बुद्धिमान् मनुष्य को भोगों से शून्य काल को व्रतरहित नहीं गमाना चाहिये । पशु और मनुष्य के मध्य में यही तो अन्तर आचार्यों ने कहा है ॥ २५ ॥
नासिका आदि का छेदन, ताडन लकडी आदि से मारना - बाँधना, अधिक बोझा लादना ओर भोजन-पान रोक देना, ये अहिंसाणुव्रत के पाँच अतिचार हैं ॥ २६ ॥
कथाग्रन्थों में यह सुप्रसिद्ध हैं कि जिस ग्रामणी ने गाँव के मुखिया ने देवता के लिये भी बकरा मारा था वह मरकर सात बार बकरा हुआ। इस प्रकार वह बहुत दुखी हुआ ।
२४)-1 D निवृत्ति:. 2 PD पञ्चपरमेष्ठिनाम्. 3 रात्रौ । २५ ) 1 अस्यां रात्रौ 2 PD सूरिभिः कथितम् 1 २६) 1D नासिकादिच्छेदनं. 2 जलतृणयोनिरोधः । २७ ) 1 [ छागम् ] 2 ग्रामपालक: 3 D तो:. 4 कथमात्मानं मोचयति, D मुक्तो भवति ।