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-१२. ३२१९] - अहिंसासत्यव्रतविचारः - 1009 ) पैशून्यहासगभं कर्कशमसमञ्जसं प्रलपितं च ।
अन्यदपि यत्स्वतन्त्रं तत्सर्वं हितं गदितम् ॥ ३२*५ 1010) छेदनभेदनमारणकर्षणवाणिज्यचौरवचनादि ।
तत्सावधं यस्मात् प्राणिवधाद्याः प्रवर्तन्ते ॥ ३२*६ 1011) अरतिकर भीतिकरं खेदकरं वैरकलहशोककरम् ।
यदपरमपि तापकरं परस्य तत्सर्वमप्रियं ज्ञेयम् ॥ ३२*७ , 1012 ) सर्वस्मिन्नप्यस्मिन् प्रमादयोगैकहेतुकत्वं यत् ।
___ अनृतवचने ऽपि तस्मानियतं हिंसा समवतरति ।। ३२*८ 1013) अथवैवं चतुर्धा
असत्यं सत्यगं किंचित् किंचित्सत्यमसत्यगम् । सत्यसत्यं पुनः किंचिदसत्यासत्यमेव च ॥ ३२*९
चुगली और हँसी से युक्त वचन, कठोर, असमंजस तथा और भी जो स्वतंत्र-आगमविरुद्ध-वचन बोला जाता है उस सब को गहित वचन कहा गया है ॥ ३२*५ ॥
जो वचन नासिका आदि के छेदने, कान आदि शरीर के अवयवों के खण्डित करने, लाठी आदि से ताडित या सर्वथा घात करने, भूमि के जोतने, व्यापारकार्य करने और चोरी करने में प्राणियों को प्रवृत्त करता है वह सावध वचन कहलाता है । कारण यह कि ऐसे वचन से सावद्य-प्राणिवध आदि से होने वाले पाप-की प्रवृत्ति हुआ करती है ।। ३२*६ ॥
जो वचन अप्रीति, भय, खेद, वैर, कलह और शोक को तथा और भी संताप को उत्पन्न करने वाला हो उसे अप्रिय वचन जानना चाहिये ॥ ३२*७ ॥
इस सब अनृत भाषण में भी चूंकि प्रमादयोग मुख्य कारण है, इसलिये इसमें भो निश्चय से हिंसा उत्पन्न होती ही हैं ॥ ३२*८ ॥
वचन के चार भेद इस प्रकार भी हैं
कोई वचन सत्य के आश्रित असत्य, कोई असत्य के आश्रित सत्य, कोई सत्य सत्य और कोई असत्यासत्य ही होता है ॥ ३२*९ ।।
३२*५) 1 D असहनशीलम् । ३२*७) 1 D°भीतिकरं, वैर, 4 Omitted. अप्रीतमं ज्ञातव्यम् ।