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" १५.७१]
- सामायिकप्रतिमाप्रपञ्चनम् - 1275 ) रागद्वेषत्यागानिखिलद्रव्येषु साम्यमवलम्ब्य ।
तत्त्वोपलब्धिमूलं बहुशः सामायिक कार्यम् ।। ७०*१ 1276 ) रजनीदिनयोरन्ते तदेवश्यं भावनीयमविचलितम् ।
इतरत्र पुनः समये न कृतं दोषाय तद्गुणाय कृतम् ।। ७० *२ 1277 ) सामायिकं श्रितानां समस्तसावद्य योगपरिहारात् ।
भवति महाव्रतमेषामुदये ऽपि चरित्रमोहस्य ॥ ७०*३ 1278 ) एवं विवक्ष्यमाणं प्रातमध्याह्नसांध्यसमयेषु ।
त्रीन् वा द्वौ वा वारानेकं वा वन्दनेत्यकर्थि ॥७१
सामायिक कही जाती है। और जो आमरण धारण की जाती है वह अनियतकालीन सामायिक कहलाती है । वह सामायिक संसारसमुद्र को मंथनेवाली है। (अर्थात् इससे संसार का नाश होता है )। इसलिये अपनी शक्ति के अनुसार उस सामायिक को धारण करना चाहिये ॥ ७० ॥
इष्टानिष्ट समस्त वस्तुओं के विषय में राग-द्वेष के परित्यागपूर्वक समताभाव का आलम्बन कर के आत्मस्वरूप की प्राप्ति को कारणभूत सामायिक को बहुत प्रकार से करना चाहिये ॥ ७०*१॥
उस सामायिक को रात और दिन के अन्त में - इन दो सन्ध्याकालों में - तो स्थिरतापूर्वक अवश्य ही करना चाहिये । इसके अतिरिक्त यदि अन्य समय में भी उसे किया जाता है तो वह दोषजनक नहीं होती, किन्तु अन्य समय में भी की गई वह लाभप्रद ही होती है ॥ ७०२२॥
जो श्रावक उस सामायिक का आश्रय लेते हैं उनके समस्त सावध योग की निवृत्ति हो जाने से उस समय चारित्रमोह -प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि - के उदय के होनेपर भी महावत होता है ॥ ७०*३ ॥
इस प्रकार जिसका कि वर्णन आगे किया जा रहा है ऐसी उस सामायिक को प्रातःकाल में मध्यान्ह में और सन्ध्याकाल में तीनों वार, दो वार अथवा एक वार करना चाहिये इसको वन्दना कहा गया है । ७१ ॥
७०*१) 1 PD°मवलम्ब्यं. 2 D बहुवारम् । ७०*२) 1 सामायिकम्. 2 D गुणाय भवति । ७१) 1 कथिता।
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