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- अभयदानादिफलम् - 68) वदतु विशदवर्ण पातु शीलं प्रपूर्ण
जप(य)तु विशदवर्ण दानतश्चापि कर्णम् । तपतु तप उदीर्णं नीरसं वात्तु शीर्ण
विफलमभयतीर्ण भस्मनीवोपकीर्णम् ॥९ 69) गुरुजनपदाम्भोजध्यानं मरुद्गणपूजनं
बहुजनमतं न्यायस्थानं कुलस्थितिपालनम् । अमलिनगुणग्रामाख्यानं विशुद्धयशो ऽर्जन
अवति यदि नो जीवानेतत्ततस्तुषखण्डनम् ॥ १० 70) शिखी मुण्डी ब्रह्मवतधरमहाभैक्षचरणो
भदन्तो दान्तो वा भ्रमयतु जगत्तीव्रकिरणः। क्षमी ध्यानी मौनी वनचरसहावासकरणस्तमोनृत्तं यद्विफलमखिलं यद्यकरुणः ॥ ११
मनुष्य निर्मल अक्षरों से परिपूर्ण सुन्दर भाषण करे, शील का पूर्णतया पालन करे, स्पष्ट अक्षरों का अर्थात् अर्हत्-सिद्धादिकों के वाचक मन्त्रों का जप करे, दान से निर्मल कीर्तिधारक कर्ण को भी जीत ले, उत्तम तप करे तथा नीरस, गले हुए अन्न भक्षण भी करें तो भी अभयदान से रहित होने से ये सब कार्य धूल में मिल जाने के समान विफल है ॥९॥
मनुष्य यदि जीवों का रक्षण नहीं करता है तो गुरुजनों के चरण कमलों का ध्यान करना, देवों की पूजा करना, सर्व जनों को मान्य ऐसा न्यायस्थान का पद प्राप्त होना अर्थात् न्यायाधीश का पद प्राप्त होना, अपनी कुल मर्यादा-सदाचारों का पालन करना, निर्मल गुणसमूह का वर्णन करना तथा निर्मल यश भी प्राप्त कर लेना ये सब कार्य तुष कंडन के-धान्यकणों से रहित भूसा के कूटने के-समान व्यर्थ हैं ॥ १० ॥
मनुष्य यदि दया से रहित-निर्दय-है तो वह भले ही चोटी को धारण कर ले, शिर मुंडा ले, ब्रह्मचर्य व्रत को धारण करके भिक्षु जैसा आचरण करे, भद्रतायुक्त हो, जितेन्द्रिय हो, सूर्य के समान तेजस्वी हो कर विश्व का भ्रमण करता रहे, क्षमावान् हो, ध्यान करनेवाला हो, मौन को धारण करता हो तथा भीलों के साथ वन में रहनेवाला हो तो भी उसका यह सब आचरण अन्धकार में किये जानेवाले नृत्य के समान निष्फल होता है ॥ ११॥ ..
९) 1 पटवक्षरम्. 2 रक्षतु. 3 ब्राह्मणादिनिर्मलवर्णम्. 4 D °कीतिः. 5 भक्षयतु. 6 सडितम्. 7 अभयदानरहितम्. 8 घृतादिक्षिप्तम् । १०) 1 देव. 2 उपार्जनम्. 3 रक्षति. 4 कारणात् । ११) 1 ज्ञानवान. 2 जितेन्द्रियः. 3 पूर्वोक्तं समस्तं विफलम् . 4 निर्दयः ।