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- आहारदानादिफलम् - 125) किं करमयः कलाचयमयः किं कीर्तिरेखामयः
किं वानन्दमयो लसन्मधुमयः किंवा सुहृद्धृन्मयः । वीक्षातृप्तविलोचनैर्नरशतैर्वीक्ष्यो ऽपि नालक्ष्यते
त्यागी तिष्ठतु यत्र तत्र सततं प्रीतिप्रफुल्लाननैः ॥ ९ 126) गाण्डीवीव धनुर्धरो विधुरिवानन्दप्रदः पश्यता
वाग्मी सूरिरिव प्रतापनिलयः पूषेवं काव्योपमः । नीत्या द्यौरिवं नीरजो नरमणिर्धात्री सर्वसहः
कीर्त्या श्वेतयते तथा न हि यथा दाता दिशां मण्डलम् ॥ १० 127) गतिमतितनुतेजःकान्तिसौहित्य॑सत्य
व्रतनियमयमाजातीर्थधर्मप्रवृत्तिप्रभृतिगुणसमूहा योगिनां तेन दत्ता
अशनवितरिता यः कामधेनूपमानः ॥ ११ अपराधों को इस प्रकार से शान्त कर देता है जिस प्रकार की वर्षा गर्मी के सन्ताप को दूर कर देती है । तथा वह उसके अविद्यमान भी श्रेष्ठ गुणों को इस प्रकार से प्रकट करता है जिस प्रकार कि पानी से परिपूर्ण तालाब कमलसमूह को प्रकट करता हैं । उसे उत्पन्न किया करता है ॥८॥
दानी जहाँ पर अवस्थित होता है वहाँ वह दर्शनीय दाता प्रेमसे विकसित मुखवाले सैकडों जनों के द्वारा आतुर नेत्रों से निरन्तर देखे जानेपर भी क्या वह कर्पूरस्वरूप है, क्या कलाओं के समूह (चन्द्र) स्वरूप है, क्या कीर्ति की रेखास्वरूप है, क्या आनन्दस्वरूप है, क्या सुन्दर वसन्त स्वरूप है, अथवा क्या मित्र के हृदयस्वरूप है; इस प्रकार सन्देहास्पद होने से वह ठीक से देखा नहीं जाता है। तात्पर्य, यह कि वह शीतलता आदि अनेक उत्तमोत्तम गुणों से संयुक्त होता है ।। ९॥
___ दाता अर्जुन के समान धनुर्धारी, देखनेवालों को चंद्रसमान आनंददायक, आचार्य के समान भाषणचतुर, सूर्य के समान प्रताप का धारक, नीति से शुक्राचार्य के समान, आकाश के समान नीरज-धूलिरहित-अर्थात् पापरहित होता है। मनुष्यों में रत्नतुल्य वह दाता पृथ्वी के समान सर्वसह-सब संकटों को सहनेवाला-हो कर अपनी कीर्ति से जिस प्रकार दिशाओं के मण्डल को शुभ्र करता है, उस प्रकार दूसरा कोई अपनी कीति से उस दिङ्मण्डल को शुभ्र नहीं करता है ॥ १० ॥
___ जो आहार देनेवाला पुरुष कामधेनु के समान है उसने योगिजनों को गति, मति,
९) 1 अमृतमयः. 2 दर्शनातृप्तनेत्रैः 3 विकसिताननैः । १०) 1 अर्जुनः. 2 चन्द्रः. 3 बृहस्पतिरिव. 4 सूर्यः. 5 शुक्रसदृशो नीत्या. 6 आकाश. 7 निर्मल. 8 कश्चित् पुरुषरत्नं तथा श्वेतयते यथा दाता श्वेत. यते. 9 D °धरित्री. । ११) 1 सज्जनता. 2 आहारदात्रा. 3 आहारदाता।