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- अभयदानादिफलम् - 61) सत्त्वानामुपकाराय गुणिनां क्लिश्यतामपि ।
यथा तथा दयालु हि ददतं को ऽवमन्यते ॥३ 62) सर्वे ऽप्यास्तिकवादिनो यदभयं संमेनिरे निर्मदा
विश्वेषां च यथा तथा प्रियतमं यत्माणितव्यं नृणाम् ।। दानं ज्ञानतपोव्रतादि विफलं सर्व विनतेनं यत्
तस्मादायमिदं मतं च निखिलं यच्चारूं तत्तत्फलम् ॥ ४ 63) प्रत्यक्षमर्थमिहलोकसुखं च वाञ्छन्
लोकं श्रयन् परिहरन् किल कायपीडाम् । कायाकृतौ परिणतां चितमध्यवस्यन् तामत्र नास्तिकबको ऽपि दयां प्रमाति ॥५
सम्यग्दर्शनज्ञानादि गुणों से संयुक्त गुणिजनों का तथा क्लेश को प्राप्त हुए दुखी जीवों का भी उपकार करने के लिये जो दयालु सत्पुरुष जिस किसी प्रकार से उन्हें उनके अनुकूल दान दे कर निर्भय करता है ऐसे दाता का भला कौन तिरस्कार करेगा? कोई भी ऐसे दाता का तिरस्कार नहीं कर सकता है ॥ ३॥
पाप, पुण्य एवं इह-पर लोक आदिक तत्त्वोंपर श्रद्धा न करनेवाले जो भी आस्तिक हैं मद से रहित उन सब को वह अभयदान अभीष्ट है । जैसे जीवन मनुष्यों को प्रिय है वैसे ही वह सब ही प्राणियों को अत्यन्त प्रिय है। इस अभयदान के बिना चूंकि अन्य दान, ज्ञान, तप एवं व्रत आदिक सब धर्माचार व्यर्थ होते हैं। इस लिये अभयदान को आद्य दान-मुख्य दानमाना गया है । इस दानका फल चारुता है अर्थात् इससे सौंदर्य प्राप्त होता है ॥ ४॥
जो केवल प्रत्यक्ष दिखते हुए पदार्थ को और इस लोक संबंधी सुख को ही स्वीकार करता है, जो लोक व्यवहार का आश्रय ले कर शरीर पीडा को दूर करता है, तथा जो शरीराकार से परिणत हुए चैतन्य को जानता है वह नास्तिक (चाक) रूप बगुला भी दया को प्रमाण मानता है । तात्पर्य-केवल इहलोक का सुख प्राप्त करने के लिये नास्तिकों ने भी दया अर्थात् अभयदान को माना है ॥ ५ ॥
३) 1 क्लेशयुक्तानाम. 2 यथा योग्यं तथा येन केन प्रकारेण. 3 दयां कुर्वन्तम्.4 कः अवज्ञा करोति । ४)1 आमनन्ति, कथयन्ति. 2 जीवितव्यं. 3 जीवितव्येन अभयदानेन इत्यर्थः. 4 मनोज्ञम.5 तस्य अभयदानस्य । ५) 1 पदार्थम् . 2 जीविव्यथां परिहरन्. 3 कायस्थैर्य प्रति उद्यमं कुर्वन्. 4 नास्तिकमतान [नु] वादी.5 प्रमाणं करोति ।