Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१ दैनिक प्रवचन-परम्परा : आज का दिन परम मंगलकारी है, शुभ है और शुक्ल है! आज अपने 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ पर प्रवचनमाला शुरू कर रहे हैं, जो कि संपूर्ण वर्षाकाल में चलती रहेगी। यह भी एक प्राचीन काल से चली आ रही पवित्र परम्परा है कि वर्षाकाल व्यतीत करने हेतु गाँव-नगर में स्थिरता कर रहे मुनिराज संघ के समक्ष प्रतिदिन धर्मोपदेश देते रहें। किसी महाज्ञानी शासनमान्य महापुरुष के ग्रन्थ का आधार लेकर धर्मोपदेश दिया जाता है। इससे अपने जैन संघ में अच्छी धर्मजाग्रति देखने को मिलती है। नियमित चार-चार महीने तक प्रवचन सुनने से श्रोताओं को धर्म का मौलिक बोध प्राप्त होता है। पापाचारों से भय लगता है और सदाचार की प्रवृत्ति बढ़ती है। विविध धर्म-आराधनाएँ होती हैं। दान-शील और तप की आराधना होती है। यह सब नियमित धर्मोपदेश का प्रभाव है। 'मंगल' क्यों करना चाहिए? अपनी प्रवचन माला का आधारग्रन्थ 'धर्मबिन्दु' रहेगा। चार-चार महीने तक निर्विघ्न प्रवचन माला चलती रहे, इसलिए अपन ने 'मंगल' किया! 'श्रुतज्ञान की पूजा' आपने अभी पढ़ी न? 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ का पूजन भी किया न? यह 'मंगल' किया आप लोगों ने | 'मंगल' में विघ्नों का नाश करने की शक्ति पड़ी है। एक बात हमारे महर्षियों ने अनुभव की बताई है- अच्छे कार्य में ज्यादा विघ्न आते हैं! 'श्रेयांसि बहुविघ्नानि'! यह प्रवचन माला अच्छा पवित्र कार्य है, इसलिए इसमें ज्यादा विघ्न आ सकते हैं-इसलिए ऐसा भावपूर्ण मंगल करें कि विघ्न हमारे कार्य को कुचल नहीं डालें, बल्कि विघ्न स्वयं नष्ट हो जायें। हाँ, सामाजिक या जासूसी उपन्यास लिखनेवाले 'मंगल' नहीं करते हैं...उनको विघ्न प्रायः नहीं आता है! कैसे आयेगा विघ्न? वह कार्य ही अच्छा नहीं है! विघ्न तो आते हैं अच्छे कार्य में, पवित्र कार्य में! एक धर्मग्रन्थ लिखना पवित्र कार्य है, इसलिए उसके प्रारंभ में मंगल करना ही चाहिए! ग्रन्थकार आचार्यदेव 'मंगल' करने की परंपरा को निभा रहे हैं। भला, अनुभवी महर्षियों द्वारा प्रारंभ की हुई परंपरा कौन नहीं निभायेगा? श्रद्धावान भी निभायेगा और बुद्धिमान भी निभायेगा! For Private And Personal Use Only

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