Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- १ ४ प्रवेश करें, मौन धारण कर प्रवचन सुनें और जाते समय भी मौन रखें ! बातें नहीं करें। शान्ति से प्रवचन सुनें। अपने छोटे-छोटे बच्चों को साथ नहीं लायें कि जो यहाँ शान्त नहीं बैठ सकते हों । प्रवचन चालू हो और एकदम बच्चा रोने लगता है, तब प्रवचन की धारा टूट जाती है। श्रोताओं का ध्यान उस बच्चे की ओर जाता है... बात बिगड़ जाती है। इस 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में बहनों के लिए भी बहुत ही उपयोगी बातें बताई गई हैं। उनकी तमन्ना चाहिए - जीवन को सुधारने की । परन्तु 'हम तो अच्छे हैं, सुधरे हुए ही हैं... ऐसा माननेवालों को नहीं सुधारा जा सकता। आप लोग तो सुधरे हुए ही हो न ? जरा अन्तरात्मा को पूछ लेना । जो रोगी अपने आपको निरोगी मानता हो, उसको निरोगी नहीं बनाया जा सकता। आप अपने आपको अच्छा मान रहे होंगे, तो मैं आपको अच्छा नहीं बना सकूँगा! आपको अपनी बुराइयों का ख्याल होना चाहिए। हाँ, आप भले यहाँ सभा में खड़े होकर अपनी बुराइयाँ प्रकट न करें, परन्तु आपको एकदम स्पष्ट ख्याल होना चाहिए अपनी बुराइयों का । तो 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ का श्रवण आप में अद्भुत जीवन परिवर्तन कर सकेगा। ग्रन्थकार एवं टीकाकार : यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा गया है। ग्रन्थकार महर्षि ने श्लोकात्मक रचना नहीं की है, सूत्रात्मक रचना की है। जिस प्रकार महान आचार्यदेव उमास्वाती ने ‘तत्त्वार्थ सूत्र' की सूत्रात्मक रचना की है, वैसे आचार्यदेव हरिभद्रसूरिजी ने 'धर्मबिन्दु' की रचना की है। सूत्र अर्थगंभीर हैं। यों भी हरिभद्रसूरिजी की प्रत्येक ग्रन्थरचना अर्थगंभीर ही है। सामान्य विद्वान उनके ग्रन्थों को समझ ही नहीं सकता है । 'धर्मबिन्दु' के सूत्रों को आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरिजी ने सरल टीका लिख कर सुबोध बना दिया है। इन महापुरुष ने अपने जैसे अबोध जीवों पर कितना महान उपकार किया है! अपने ज्ञान को सर्व जीवों के लिए खुला छोड़ गये...' ज्ञान प्राप्त करो और मोक्षमार्ग पर चलते रहो...' ऐसी उदात्त भावना से उन महापुरुषों ने ग्रन्थरचनाएँ की हैं। टीकाकार आचार्यश्री ने कहा है : 'भव्यजनोपकृतिकृते' भव्य जीवों के उपकार के लिए यह टीका उन्होंने लिखी है । यह टीका - ग्रन्थ संस्कृत - साहित्य का अनमोल ग्रन्थ है, ऐसी रसपूर्ण इसकी रचना है। For Private And Personal Use Only

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