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प्रवचन-१
और पापमय मानवजीवन का क्या महत्त्व है? ऐसे तो करोड़ों मनुष्य नरक गति और तिर्यंच गति में चले जाते हैं। संसार में सुख की खोज छोड़ दोः
समग्र संसार ही दुःखमय है। कभी कहीं किसी गति में थोड़ा-सा सुख दिखाई देता है, तो उसका परिणाम दुःखरूप होता है! एक-सा सुख-शाश्वत् सुख संसार में है ही नहीं। संसार में सुख की खोज करना छोड़ो।। __ ऐसे दुःखपूर्ण, वेदनापूर्ण और संतापभरपूर संसार में भी उत्तम आत्माएँ होती रही हैं। ज्यों-ज्यों आत्मा कर्मों के बंधनों से मुक्त होती जाती है, ज्ञान का प्रकाश बढ़ता जाता है। ज्ञान के प्रकाश में आत्मा आत्मा को देखती है, तब कर्मों से, कर्मबंधनों से पैदा हुई अपनी दुर्दशा देखकर उसे घोर पीड़ा होती है, कर्मों के बंधन तोड़ने के लिए वह उठ खड़ी होती है। ज्ञान के प्रकाश में, कर्मों के बंधन तोड़ने के उपाय उसे दिखते हैं, वे उपाय ही 'धर्म' हैं। धर्म-पुरुषार्थ द्वारा आत्मा कर्मबंधनों से मुक्ति पाती है। 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ की उपयोगिता :
परम करुणावंत वे अनंतज्ञानी तीर्थंकर भगवंत संसार की, संसार में भटकते हुए जीवों की दुःखपूर्ण स्थिति देखकर, उनको दुःखों से मुक्त करने के लिए, धर्मतीर्थ की स्थापना करके, जीवों को धर्म का प्रकाश देते हैं। जीवों के प्रति अपार करुणाभाव में से धर्म का आविर्भाव हुआ है और ऐसी ही करुणा में से धर्मतत्त्वों के प्रतिपादक ग्रन्थों का सृजन होता है। __जो वास्तव में ज्ञानी होते हैं, वे अवश्य करुणावंत होते हैं। श्रमण भगवान महावीर परमात्मा के इस धर्मशासन में, ऐसे अनेक करुणावंत ज्ञानी महापुरुष हुए हैं और हो रहे हैं। सैंकड़ो वर्ष पूर्व आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी ऐसे ही ज्ञानी महापुरुष थे। उन करुणावंत ज्ञानी महर्षि ने अपने जीवनकाल में १४४४ ग्रन्थरत्नों की रचना की थी। आज वे १४४४ ग्रन्थ सबके सब तो नहीं मिल रहे हैं, परन्तु जो भी ग्रन्थ मिल रहे हैं वे अद्भुत और अपूर्व हैं। धर्मबिन्दु ग्रन्थ उन महापुरुष की ही रचना है, जिस पर अपने विवेचना करेंगे।
यह ग्रन्थ उच्च जीवन निर्माण के लिए अत्युत्तम है। यदि आप अपना नैतिक और धार्मिक उत्थान करना चाहते हैं, यदि व्यवहारशुद्धि करना चाहते हैं, तो यह ग्रन्थ आपको सुन्दर और सटीक मार्गदर्शन देगा। भले यह ग्रन्थ
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