Book Title: Dhammam Sarnam Pavajjami Part 1 Author(s): Bhadraguptasuri Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- १ USSRE www.kobatirth.org श्री हरिभद्रसूरिजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'धर्मबिन्दु' रखा है, पर इस बिन्दु में सिन्धु उफन रहा है! श्री मुनिचन्द्रसूरिजी उस सिन्धु को यात्रा करवा रहे हैं! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौन, जागृति और अप्रमाद, धर्मश्रवण के लिए ये तीन बातें अनिवार्य है। 'परमात्मा को प्रणाम' यह भावमंगल है। भावमंगल से विघ्नों का नाश होता हैं। सच्चा ज्ञान वही होता है जो 'अहं' को भुला दे ! करुणा का तत्त्व हो ऐसा है जो आदमी को सत्कार्य के लिए प्रेरित करे, प्रोत्साहित करे ! प्रवचन : १ ON संसार अनादि है । संसार में जीव भी अनादि है ! जीव और कर्म का सम्बन्ध भी अनादि है । कर्मों के बंधनों से बँधे हुए अनंत अनंत जीव इस अनादि संसार की चार गतियों में भटक रहे हैं। कर्मों के प्रभाव से जीव में मोह, अज्ञान, राग-द्वेष, शाता-अशाता, सुख-दुख...इत्यादि तत्त्व सदैव सक्रिय होते हैं। इसमें भी नरक और तिर्यंच योनि में तो प्रगाढ़ रूप से मोह और अज्ञान, राग और द्वेष सक्रिय बने हुए होते हैं। जहाँ ज्ञान का प्रकाश नहीं हो, अज्ञान का घोर अन्धकार हो, वहाँ सिवाय दुःख, संताप और वेदना के कुछ भी नहीं होता है । देव गति में भी यदि सम्यक्दर्शन हो, तब तो ठीक है, अन्यथा वहाँ पर तो राग-द्वेष की उद्दीप्त तांडव लीला ही है। मोह और अज्ञान का कालनृत्य ही चलता रहता है। For Private And Personal Use Only शेष रहा मानवजीवन! मानवजीवन में भी संस्कार संपन्न कुल में जन्म मिला हो, सदगुरु का समागम मिला हो, तब तो ज्ञान का प्रकाश मिल जाय... अन्यथा मानवजीवन का कोई महत्त्व नहीं है । सुसंस्कारहीन, मानवतारहित, धर्मभ्रष्टPage Navigation
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