Book Title: Daulat Bhajan Saurabh
Author(s): Tarachandra Jain
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 10
________________ कर लिया है, अपने शुद्ध रूप को जान लिया है : 'जिन' हो गये हैं, जो सब ज्ञेवों को जाननेवाले हैं, जो मोह अंधकार को नष्ट करनेवाले सूर्य हैं, वीतरागता से भरपूर हैं, उनके गुणों का चिन्तन करने से निज व पर का भेदज्ञान व विवेक होता है (१)। वे अरहन्त जिनने घातिकर्मों का नाश कर दिया है : जिनकी समीपता में शरण में सर्प व मोर, हरिण व सिंह भी अपना जातिगत विरोध भूल जाते हैं, जिनका यश सारे जगत में फैल रहा है (२): जिनका ज्ञान व तप ऐसा है कि उनके दर्शन से अपने आत्मस्वरूप का भान दर्शन होने लगता है (८); जिन्होंने आठ कर्मरूपी योद्धा शत्रुओं को जीतकर मोक्षरूपी अंकुर को दृढ़ किया है (८); जिन्होंने बुगपत ज्ञान और दर्शन से अनन्त भावों को देखा व जान लिया है (२१), जो बिना किसी निजी स्वार्थ के जगत के हितकारी हैं (२३); जो अनन्त ज्ञानअनन्त दर्शन, अनन्त बल व अनन्त सुख के धारी हैं (२५); जगत में वे ही मंगल हैं, उत्तम हैं, शरण हैं, मोक्षमार्ग को बतानेवाले दानी - उपकारक हैं (३), मोक्षमार्ग दिखाने वाले हैं (४)। उन जिनेन्द्र के दर्शन से मुझे स्व - पद की रुचि जागृत हुई हैं, पुद्गल से भिना अपने चैतन्य रूप की बोधि हुई है (११): अब स्वभाव की आराधना भली लगने लगी है (११); हे जिनदेव ! अब मैं आपकी शरण में आ गया हूँ (५); आप जगत के कल्याण के लिए सहज निमित्त कारण हो - यह मुझे निश्चय हो गया है (४); आपकी शरण को छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाऊँ (६); अब तक आपकी शरण में नहीं आया . अनादिकाल से यही गलती रही (६); आपके गुणों को धारणकर भव्यजन मोक्षमार्ग पर गमन करते हैं (५); यद्यपि आप विरागी हैं, राग-द्वेषरहित हैं फिर भी सहजरूप से मोक्ष का मार्ग बतानेवाले हैं, जैसे सूर्य सहजरूप से सबको राह दिखाता है (२९), (५४); श्री जिनेन्द्र के मुखरूपी सूर्य के दर्शन से भ्रमरूपी अंधकार के बादल विघट जाते हैं, अज्ञान दूर हो जाता है (९): जिनेन्द्र की शान्त मुद्रा आनन्दित करनेवाली है (१०); मोहरूपी अंधकार का नाश हो गया (१३), (१४); इनके दर्शन से अपनी आत्मसंपदा के दर्शन होते हैं (१५); उनके गुणों का चितवन करने से अपार और दुष्कर संसार-समुद्र का तर निकट दीखने लगता है (१४), (१५): विभावों के तनाव से मुक्ति व निजस्वरूप को स्वतन्त्रता की प्रतीति होने लगी है (१३), (७); उनके गुणों का चितवन मुझे अपने गुणों की प्रतीति कराता रहे । आपका दर्शन मोक्ष का मार्ग

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