________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 21 अब राजा वीरसेन और रानी चंद्रावती दोनों दीक्षा ग्रहण करते हैं। चारों विद्याएँ प्राप्त होते ही रानी वीरमती अत्यंत उन्मत्त हो गई। जो विद्या वास्तव में अभिमानरूपी ज्वर का नाश करनेवाली होती है, उसी विद्या से वीरमती अभिमान के जोरदार : ज्वर से ग्रस्त हो गई / विद्यामद से अस्त वीरमती सब को तिनके के समान तुच्छ समझने लगी। मंत्रों के प्रयोग से उसने अपने पति तथा अन्य लोगों को अपने वश में कर लिया। इधर कालक्रम से राजकुमार चंद्रकुमार ने शैशवावस्था समाप्त करके यौवन में पदार्पण किया। राजा ने अपने पुत्र को विवाहयोग्य जान कर गुणेश्वर राजा को कन्या गुणावलो के साथ उसका बड़ी धूमधाम से विवाह करा दिया। गुणावली सचमुच गुणों की 'अवली' (पंक्ति) ही थी / जैसा नाम वैसे उसके गुण भी थे। गुणावली पतिव्रता और धार्मिक प्रवृत्ति की युवती थी। रुपसौंदर्य में रति समान, बुद्धि में बृहस्पति समान और विद्या में सरस्वती जैसी होनेवाली गुणावली का कंठ कोयल की तरह मधुर था / हथिनी की तरह वह मस्तानी चाल से चलती थी और उसकी आँखें कमल की तरह सुंदर और विशाल थीं। उसका मुख पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह तेजस्वी था और वह चौंसठ कलाओं मैं कुशल थी। ऐसी रुपवती और गुणवती पत्नी पाकर चंद्रकुमार स्वयं को महान् भाग्यवान् समझता था / गुणावली के साथ विविध क्रीड़ाएँ करते हुए चंद्रकुमार अपना जीवन अत्यंत सुख से व्यतीत कर रहा था। प्रमुख अप्सरा के कहने के अनुसार रानी वीरमती चंद्रकुमार के प्रति सगी माँ से भी | अधिक प्रेम का व्यवहार करती थी। लेकिन चंद्रकुमार के प्रति वीरमती का यह प्रेम तब तक ही टिकनेवाला था, जब तक कि चंद्रकुमार का पुण्योदय था। दूसरे का प्रेम पाने के लिए भी पुण्य की आवश्यकता होती है। बिना पुण्य के प्रेम नहीं मिलता है। ___ एक बार रानी चंद्रावती अपने पति राजा वीरसेन के बालों में सुगंधित तेल लगा कर बालों में कंधी कर रही थी कि अचानक उसने राजा के काले बालों के बीच एक सफेद बाल देखा। पति के बालों में यह सफ़ेद बाल देख कर रानी चंद्रावती का मुँह मलिन हो गया। उसके चेहरे पर शोक की भावना फैल गई। उसने अपने पतिदेव राजा वीरसेन से कहा, “हे स्वामी, अकस्मात् शत्रुका दूत आ पहुँचा है, इसलिए आप सावधान हो जाइए।" राजा के अंत:पुर में P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust