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नत्वेभास्यं वक्ष्ये युरोपियनरीतितो बीजमें म्फटया हिन्द्याख्यगिरा बापूदेवाभिधानोऽहम् ॥ ५ ॥
बीजगणित
अध्याय १ ।
प्रक्रम । अ, क, ग, इत्यादि अतरों को संख्याओं के घातक अर्थात् दिखलाने हार मान के उन्हीं अक्षरों से जो गणित करते हैं उस को बीजगणित कहते हैं। यह प्रायः सब गणितों का उपयोगी है।
यहां जो नो संख्या व्यक्त अर्थात् जानी हुई हैं उन के योतक अ, क, ग, इत्यादि वर्णमाला के पहिले अतर मानलिये हैं। और जो संख्या अव्यक्त अर्थात् अज्ञात हैं उन के द्योतक य, र, ल, इत्यादि वर्णमाला के अन्त के अतर मानलिये हैं। और बिन संख्याओं के व्यक्तत्व का वा अव्यक्तत्व का निश्चय नहीं है उनके दोतक त, थ, द, इत्यादि मध्यम वर्ण माननिये हैं। और इन सब वर्णी के संकलन, व्यवकलन इत्यादि परिकों को कितने एक+,-.x, इत्यादि विहां से दिखलाते हैं।
परिभाषा ।
२। + यह निह संकलन का योतक, इस को धन चिह्न कहते हैं। यह चिह्न निस पद के अर्थात किसी संव्या के दिखनाने हारे बीजा. स्मक चिह्न के पहिने रहता है सो दिखनाता है कि उस केवल पद की संख्या जोड़ी हुई है उस को धन पर कहते हैं। और इसीलिये कोर दो पदों के बीच में वा बहुत पद हार्वे तो पास २ के दो २ पदों के बीच में + इस चित्र को लिखने में जो बनता है वह दिखलाता है कि उन सब
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