Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

Previous | Next

Page 11
________________ पाप तो॥ अश्व शृंगार्यों उत्तम घणो, पुत्र होसी श्रेष्ट गुणथी अमापतो ॥ बुद्धि बल राज ऋद्धि बधे, सूरवीर नाम दिपासी मां बाप तो ॥१०॥२०॥सुणी राजिंद्र राजी हुवा, पाठकने घणो दिघो धन्न तो॥ सात पिडी लग खुटे नहीं, खुषी कियोसब तणो तिहां मन्नतो॥हर्षी पंडित घरे गया,राणीगर्नका करे जतन तो॥* बत्तीस दोषण टालवे, ताजे मासे डोहलो * मनहर छंद-गर्भ युक्त नारी, वायू वस्तुनो भक्षण करे, कुंबडो अन्धो ने जड पुत्र पुत्री थायछे ॥ पित्तथी खलित पीलो, कफ वारे पांडू रोग, खाराथी चक्षूनो नाश, शीत वाको पाय छे. ॥ उष्ण हरें बल ने चपलता पतन करे, मैथुन सेवाथी विभचारी नाशी नाय छ । विषम जगामें शयन, आसण, पलन करे, उंच नीच शिघ्र गती, गर्भने गमाय छे ।। १ ।। अती लूखा चीकणाने खारा खाट मगि आहार, अतीसार वमन ते गर्भ खीराय छे ।। हांसथी हंसालू ने रूद्रनथी रोवण्या होय, तपथी निर्बल सील, कुसीले गमाय छ, धर्म कियां धर्मात्मा, ज्ञानसुण्या ज्ञानीवणे, जेवा कृत्य माता कर, ते तेने प्रणमाय छ ।। कहत अमोल, जोवो वागभट्ट ग्रंथ खोल, तनुज सुधारवाने हितथी चेतायछे ।। २॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 126