Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 9
________________ चिंता बेफिकर निशंग तो ॥ सु०॥ १४ ॥ तब पूर्व पुन्योदये,स्वपन अवलोकियो उत्तम तुरंग तो॥ चौफालो नने कूदतो, जैसे बनमाहे धाप्यो कुरंग तो ॥श्रृंगार्यो अतीशौनितो, नूषण बहुमोला दिपे ने ढंगतो ॥ मुखे वगासी पाया थका, उदरमें पेठो धरी उबरंग तो ॥ सु० ॥१५॥ तत्तिण देख जागृत हुइ, हर्षी चाली जिम लेहर उठे गंग तो ॥ प्रीतम नवने पधारिया, स्वामिजी दिठा निद्रामें चंगतो ॥ मधुर वयण गायन करी, जागृत किया करतल प्रसंग तो ॥ नृप जागी अादरदियो,सुखा. सण बेठी चित अनंग तो॥ सु०॥१६॥जीतारी नृप पूरे राणीने, किण कारण पधारिया आपतो। स्वपन विरतंत राणी तदा, जिम देख्यो तिम कह दियो सापतो॥ महीपति अति हर्षित हुइ, पालो १ आकाशमें. २ हीरण ३ पेट. ४ स्थीर. ५ विचारे.

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