Book Title: Bhimsen Harisen Charitra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Pannalal Jamnalal Ramlal

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Page 8
________________ यतो ॥ पाणी पाद मक्खन समा, हीण निंदनिय कोइ अंग नायतो ॥ लज्जा सील विनयदिी, नृप मोह्यो अंतर नहीं चहायतो॥ धर्म कर्ममें डोही घणी, जोडो मिल्यो पूर्व पुन्नसे अायतो ॥ सु०॥ ॥ १२ ॥शयन भवन सुहामणो, घटार्यों मटार्यों अती उत्तगंतो॥मुगन्ध द्रव्य महका रह्या, अचानक नर देख हो जावे दंगतो ॥ सेजा मुकुमाल मनोहरूं, रेशम निवार लगाइ नव रंग तो ॥ यकतुल मुखमल गादीयां, जिम बालू गंगा सरीता तरंगतो ।। सु० ॥ १३ ॥ तिणमें शयन किया थकां, सुखे निद्रा लहे शांत अनंगतो ॥ गुणसुन्दरी राणी तेहमें, निशमाहे मूती धरती उमंगतो ॥ पवन शीतल घाले दासीया, मधुर गित गाय मिला स्वर संगतो॥ निद्रा आइ राणी नणी, नही नय १ हाथ. २ पग. ३ हूस्यार. ४ सोनेका मकान. ५ उंचा ६ .नदी.

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