Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Vamdev Acharya, Ramechandra Bijnaur
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 16
________________ कौनसा अशुभ व कौनसा कष्ट हो सकता है ? प्रर्थात् प्राणियों को सबसे अधिक अशुभ व कष्ट देने वाला यह शरीर ही है, अन्य नहीं है । मनुस्मृति में कहा है- अग्निहोत्री ब्राह्मण अमावस्या के दिन पितृयज्ञ को करके प्रत्येक मास 'पिण्डान्वाहार्थक' नामक श्राद्ध करे ।' विद्वान लोग पितरों के मासिक श्राद्ध को अन्वाहार्यं नामक श्राद्ध कहते हैं । वह प्रयत्नपूर्वक प्रशस्त मांस से करना चाहिये | 3 गरुडप्राण के ९६ वें अध्याय में पितरों को मांस से भोग लगाकर स्वयं को जाता । उसके मार्ग में कोई बाधा नही पड़ती । 4 के उपर्युक्त मत के विपरीत जैनों का कहना है कि यदि किसी एक पुरुष नरक जाता है तो फिर कहना चाहिये कि उसका फल उसको नहीं मिल सकता। यह धारण कर लेता है तो पितृत्व किसके उत्पन्न व्यर्थ है । कल गुण या दोष से कोई दूसरा जीब स्त्रर्ग, जो पुरुष स्वयं पुण्य वां पाप करता है, यह जीव मरकर तत्क्षण अन्य देह को हुआ, अतः पितरों की उत्पत्ति कहना लिखा है कि जो मनुष्य श्राद्ध में देवों तथा पीछे से माँस खाता है, वह सीधा स्वर्गलोक मनुस्मृति में कहा है -- यथार्थं पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयंभुवा । यज्ञश्च भूत्यं सर्वस्य तस्माद्यज्ञे वधोऽवधः ॥५/३९ ब्रह्माजी ने यज्ञ के लिए पशुओंों को स्वयं बनाया है और यज्ञ सबके कल्याण के लिए है । इसलिए यज्ञ में पशुवध नहीं है । मधुपर्के च यशेच पितृदैवतकर्मणि । अत्रैव पशवो हिस्पा ना न्यत्रेत्य ब्रवीन्मनुः ।। मनु. ५/४१ १. पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका २५ / ६-७ २. मनुस्मृति ३ / १२२ ३. पितॄणां मासिकं श्राद्धमन्वाहार्षं विदुर्बुधाः । तच्चाभिषेण कर्त्तव्यं प्रशस्तेन प्रयत्नतः ।। वही ३ / १२३ ४. प. कैलाशचन्द्र जैन शास्त्री द्वारा लिखित भारतीय धर्म एवं अहिंसा पृ. ३५ से उद्धृत ५. देवसेनः भावसंग्रह ३६ ६. वामदेव: भाबसग्रह ५२

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