Book Title: Bharat ki Khoj
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Osho Rajnish

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Page 10
________________ भारत की खोज जाने की कोई अनिवार्यता नहीं कोई इनएवटीविल्टी नहीं की शरीर मरे ही नहीं आज रूस ने डेढ़ सौ वर्ष की उम्र के सैंकड़ों बूढ़ेह्व अभी एक स्त्री की मत्य हई जिसकी उम्र एक सौ अठठत्तर वर्ष थी। आज रूस में कि सी को यह कहना की तम सौ वर्ष जियो आशीर्वाद देना वह आदमी नाराज हो जाए गा। क्योंकि उसका मतलब है की आप जल्दी मर जाने की कामना कर रहे हैं। हम अपनी समस्याओं को आज यथार्थ कहके अनरीयल कहके उनसे बच गए बच जाने से समस्याएं मिट नहीं गई समस्याएं इकट्ठी होती चली गई भारत के पास जितनी समस्याएं हैं उतनी दुनिया के किसी देश के पास नहीं। क्योंकि भारत में पांच हजार वर्षो में समस्याओं का ढेर लगा दिया है। सब समस्याएं इकट्ठी होती चली गईं कोई समस्या हमने हल ही नहीं की। बैलगाड़ी जब बनी थी उस जमाने की समस्या भी मौजद है और जेट बन गया उस जमाने की समस्या भी मौजूद है वह सारी समस्याएं इकट्ठी होती चली गई उन सब का बोझ हमारी छाती पर है और उन को हम हल नहीं कर पाएंगें। जब तक हम आधारभूत सिद्धांतों को न बदल दें जिनकी वजह से वह इकट्ठी हो गई हैं। उनमें पहली बात आप से कहना चाहता हूं, स्पेलिबिल, वह यह भागने से काम नह चलेगा पलायन से काम नहीं चलेगा एसकेपीजम से काम नहीं चलेगा इंकार करने से काम नहीं चलेगा जिंदगी को माया कहने से काम नहीं चलेगा और जिंदगी को मा या कहने वाले लोगों से पूछने से काम नहीं चलेगा। जिंदगी एक यथार्थ है और कित ने आश्चर्य की बात है की जिंदगी के यथार्थ को भी सिद्ध करना पड़ेगा यह भी कोई सिद्ध करने की वात है। एक अंग्रेज विचारक था वरकले, वह कहता था सब झूठ है, सव माया है वह डाक्टर जॉनशन के साथ घूमने निकला था एक रास्ते पर रास्ते में वह वात करने लगा की सव जो दिखाई पड़ रहा है सब झूठ है डा० जॉनशन ने रास्ते के कीनारे तक पत्थर उठाकर बरकले के पैर पर पटक दिया वरकले पैर पकड़ कर बैठ गया पैर से खून वहने लगा जॉनशन ने कहा क्यों बैठ गए हो पैर पकड़ कर। उठो! सब झूठ है, पत्थ र भी झूठ है और चोट भी झूठ है। पैर पकड़ कर क्यों बैठ गए हो? लेकिन वरकले उतना चालाक नहीं था अगर वह भारत में पैदा हुआ होता तो जोनशन इस तरह उ त्तर नहीं दे सकते थे। मैंने सुना है एक दार्शनिक को जो कहता था जगत असत्य है एक राजा के दरबार में लाया गया और उसने सिद्ध कर दिया की जगत असत्य है। सिद्ध करने की तर कीवें हैं सिद्ध किया जा सकता है। सच तो यह है की सत्य को सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं होती सिर्फ असत्य को ही सिद्ध करने की जरूरत पड़ती है। सत्य तो है उसे सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं असत्य को सिद्ध करने के लिए श स्त्र लिखने पड़ते हैं तर्क और आरग्यूमेंट और विवाद देने पड़ते हैं मेरी दृष्टि में सिर्फ असत्य को ही सिद्ध करने की जरूरत पड़ती है सत्य को सिद्ध करने की कोई जरू Page 10 of 150 http://www.oshoworld.com

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