Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषाय- व्याख्या
तस्य मानं मतं पाने पलद्वयमितं बुधैः ।
५ तोले द्रव्यको भली प्रकार कूटकर रातको ३० तोले जलमें भिगोदे प्रातः काल छानले, इसे हिम और शीतकषाय कहते हैं । इसकी शास्त्रोक्त मात्रा १० तोले है ।
फाण्टविधि:
क्षुण्णे द्रव्यपले सम्यग् जलमुष्णं विनिः क्षिपेत् । मृत्पात्रे कुडवोन्मानं ततस्तु स्रावयेत्पदात् ॥
स स्याच्चूर्णद्रवः फाण्टस्तन्मानंद्विप लोन्मितम् ।
( चाय की भांति) कुटे हुए ५ तोले द्रव्यको गरम २ खौलते हुए २० तोले पानीमें मिट्टी के बर्त - नमें डालदें फिर कुछ देर बाद छान लें। इसे चूर्णद्रव तथा फाण्ट कहते हैं। इसकी शास्त्रोक्त मात्रा १० तो है ।
अपिधानमुखे पात्रे जलं दुर्जरतां व्रजेत् ।
तस्मादावरणं त्यक्त्वा क्वाथादीनां विनिश्चयः ॥ कषायमें प्रक्षेपविधि:
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(नोट १) क्वाथ सदैव मिट्टीके बर्तन में बनाना चाहिये ।
(नोट २) क्वाथ तैयार करते समय बर्तन का मुख ढकना न चाहिये क्योंकि ऐसा करने से क्वाथ दुर्जर होजाता है यथा शार्ङ्गधरोऽप्याह
काथे क्षिपेत्सितामशैचतुर्थाष्टमषोडशैः । वातपित्तकफातङ्के विपरीतं मधु स्मृतम् ॥ जीरकं गुग्गुलं क्षारं लवणं च शिलाजतु । हिंगु त्रिकटुकं चैव का शाणोन्मितं क्षिपेत् ॥
( ७ )
क्षीरं घृतं गुडं तैलं मूत्रं चान्यद्द्रवं तथा । कल्कं चूर्णादिकं वा विक्षिपेत्कर्षसम्मितम् ॥
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क्वाथमें - मिश्री वातज रोगोंमें चतुर्थीश, पित्तज रोगो में ८वां भाग और कफजरोगों में १६वां भाग मिलानी चाहिये । यदि मधु मिलाना हो तो इसके विपरीत अर्थात् वातमें १६ वां अंश, पित्तमें आठवां और कफर्मे चतुर्थीश मिलावें । जीरा, गूगल, क्षार, लवण, शिलाजीत, हींग और त्रिकुटा* डालना हो तो एक शाण (३ मासा) डालना चाहिये । दूध, घी, गुड़, तेल, मूत्र और अन्य कोई द्रव पदार्थ तथा कल्क या चूर्ण आदि क्वाथ में मिलाना हो तो १। तोला लेना उचित है ।
*सोंठ, मिर्च, पीपल