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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥५९१ ॥
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सचमणपयोग परिणए वा मोसमणपयोग वा सच्चामोसमणप्प० वा असच्चामोसमणप्प० वा, जइ सञ्चमणप्पओगप० किं आरंभसचमणप्पयो० अणारंभसचमणप्पयोगपरि० सारंभसचमणप्पयोग० असारंभसचमण० समारंभसचमणप्पयोगपरि० असमारंभसचमणप्पयोगपरिणए ?, गोपमा ! आरंभसचमणप्पओगपरिणए वा जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणए बा,
[प्र० ] हे भगवन् ! एक द्रव्य शुं प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विस्रसापरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विस्रसापरिगत पण होय. [ प्र० ] हे भगवन् ! जो ते [एकद्रव्य ] प्रयोगपरिणत होय तो शुं मनःप्रयोगपरिणत होय, वाक्यप्रयोगपरिणत होय, के कायप्रयोगपरिणत होय ? [अ०] हे गौतम! ते मनःप्रयोगपरिणत होय, वाक्यप्रयोगपरिणत होय के कायप्रयोगपरिणत होय. [प्र] हे भगवन् ! जो ते एकद्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होय तो शुं सत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, मृपामनः प्रयोगपरिणत होय; सत्यमृषामनः प्रयोगपरिणत होय के असत्यामृषामनः प्रयोगपरिणत होय ? [ उ० ] हे गौतम! ते सत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, मृषामनःप्रयोगपरिणत होय, सत्यमृषामनः प्रयोगपरिणत होय के असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होय. [प्र० ] हे भगवन् ! जो ते एकद्रव्य सत्यमनः प्रयोगपरिणत होय तो शुं आरंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, अनारंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, संरंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, असंरंथसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय, समारंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय के असमारंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत होय ? [अ०] हे गौतम! ते आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय, यावत् असमारंभसत्यमनः प्रयोगपरिणत पण होय.
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८ शतके उद्देशः १
॥५९१।।