Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥७४८ ॥
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गोयमा ! जस्स णं नाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं असोच्चाकेवलिस्स वा जाव तप्पक्खियवासिया वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज सवणयाए, जस्म णं नाणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवइ से णं असोचा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्विडवासियाए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज सवणयाए, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-तं चैव जाव नो लभेज्ज सवणयाए ॥
[प्र० ] राजगृह नगरमां यावत् [ भगवान् गौतमे] आ प्रमाणे पूछयुं - हे भगवन् ! केवलि पासेथी, केवलिना श्रावक पासेथी, केवलिनी श्राविका पासेथी, केवलिना उपासक पासेथ, केवलिनी उपासिका पासेथी, केवलिना पाक्षिक (खयंबुद्ध) पासेथी, केवलिना पाक्षिक श्रावक पासेथी, केवलिना पाक्षिकनी श्राविका पासेथी, केवलिना पक्षना उपासक पासेथी अने केवलिना पाक्षिकनी उपासिका पाथी सांभळ्या विना जीवने केवलज्ञानीए कडेला धर्मना श्रवणनो-ज्ञाननो लाभ थाय ? [उ०] हे गौतम ! केअलि पासेथी यावत् तेवा पाक्षिकनी उपासिका पासेथी सांभळ्या विना पण कोइ जीवने के लिए कहेला धर्मश्रवरणनो लाभ थाय अने कोड़ जीवने लाभ न थाय. [ प्र० ] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो सांभळ्या विना यावत् [ धर्म] श्रवणनो लाभ न थाय ? [उ०] हे गौतम! जे जीवे ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम करेलो छे ते जीवने केवलि पासेथी यावत् तेना पाक्षिकनी उपासिका पासेंथी सांभळ्या विना पण के लिए कहेला धर्मश्रवणनो लाभ थाय, अने जे जीवे ज्ञानावरणीय कर्मनो क्षयोपशम कर्यो नथी जे जीवने केवलि पाथी यावत् तेना पाक्षिकनी उपासिका पासेथी सांभळया विना के लिए कहेल धर्मने सांभळवानो लाभ न थाय. हे गौतम! ते हेतुथी एम कहूं छे के, तेने यावत् 'श्रवणनो लाभ न थाय. '
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९ शतके
उद्देशः४ ॥७४८ ॥

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