________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जाण; कोइ जीव शुद्ध आभिनिबोधिकज्ञानने उत्पन्न करे अने कोइ जीव यावद् न उत्पन्न करे; ए प्रमाणे यावत् मनःपर्यवव्याख्या- ज्ञान सुधी जाणवू, कोइ जीव केवलज्ञान उपजावे अने कोइ जीव केवलज्ञान न उपजावे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी P९शके प्राप्ति कहो छो के-'धर्मने सांभळ्या शिवाय ते प्रमाणे यावत् कोइ जीव केवलज्ञान न उत्पन्न करे ? [उ०] हे गौतम ! १ जे जीवे 81 | उद्देश ७५७॥ ताज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कर्यो, २ जेणे दर्शनावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कर्यो, ३ जेणे धर्मांतरायिक कर्मोनो ॥७५७७
क्षयोपशम नथी कर्यो, ४ प प्रमाणे चारित्रावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कों, ५ यतनावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कों, | ६ अध्यवसानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कर्यो, ७ आमिनिवोधिकज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कर्यो, यावत् 181 १० मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम नथी कों, अने ११ जेणे केवलज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षय नथी कर्यो ते जीव केवलज्ञानी पासेथी यावत् सांभळ्या विना केवलज्ञानीए कहेला धर्मने सांभळ्वाने प्राप्त न करे, अर्थात् न जाणे, शुद्ध सम्यक्त्वनो
अनुभव न करे, यावत् केवलज्ञानने न उत्पन्न करे, तथा जे जीवे ज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम कर्यों छे, जेणे दर्शनावरणीय है कर्मोनो क्षयोपशम कर्यो छे. जेणे धर्मांतरायिक कोनो क्षयोपशम कर्यो छे, ए प्रमाणे यावत् जेणे केवलज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षय
कयों छे ते जीव केवली पासेथी यावत् सांभळ्या विना पण केवलिए कहेल धर्मने जाणे, शुद्ध सम्यक्त्वनो अनुभव करे अने यावत् र 5 केवलज्ञानने उत्पन्न करे. ॥ ३६५ ॥ द्रा तस्सणं भंते! छटुंछडेणं अनिक्वित्तेणं तवोकम्मेण उड्डे बाहाओ पगिजिझय पगिझिय सूराभिमुहस्स आयावहैणभूमीए आयावेमाणस्स पगतिभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगतिपयणुकोहमाणमायालोभयाए मिउमद्दवसंपन्नया
For Private and Personal Use Only