Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 195
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandi व्याख्याप्राप्तिः ॥७६५॥ ९ शतके उद्देशम्। ॥७६५० उप्पाडेज्जा, तस्स णं अट्ठमंअट्टमेणं अनिक्खित्तणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स पगइभद्दयाए तहेव जाव गवेसणं करेमाणस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ, से णं तेणं ओहिनाणेणं समुप्पन्नण जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उकोसेणं असंखेज्जाइं अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खण्डाई जाणइ पासइ॥ से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु | होज्जा?, गोयमा! छसु लेस्सासु होज्जा, तंजहा--कण्हलेसाए जाव सुक्कलेसाए। [प्र.] हे भगवन् ! केवली पासेथी यावत् तेना पक्षनी उपासिका पासेथी (धर्म) सांभळीने कोइ जीव केवलिप्ररूपित धर्म प्राप्त करे [उ०] हे गौतम! केवलज्ञानी पासेथी यावत् सांभळीने कोइ जीव केवलिप्ररूपित धर्मने प्राप्त करे अने कोइ जीव न करे. ए प्रमाणे यावत् 'असोचा'नी जे वक्तव्यता छ तेज वक्तव्यता ‘सोचा'ने पण कहेवी. परन्तु अहीं 'सोचा' एवो पाठ कहेवो. बाकी सर्व पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. यावत् जे जीवे मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम कर्यो छे, अने जे जीवे केवलज्ञानावरणीय कर्मोनो क्षय कर्यो छे ते जीवने केवली पासेथी यावत् तेनी उपासिका पासेथी केवलीए कहेल धर्मनो लाभ थाय, अने ते शुद्ध सम्यक्त्वनो अनुभव करे, यावद केवलज्ञानने प्राप्त करे. (केवलज्ञानी वगेरे पासेथी धर्म सांभळीने सम्यग्दर्शनादि जेने प्राप्त थयेल छे एवा) तेने निरन्तर अट्ठम तप करवा वडे आत्माने भावित करता, प्रकृतिनी भद्रताथी तेमज यावत् मार्गनी गवेषणा करता अवधिज्ञान उत्पन्न थाय छे. अने ते उत्पन्न थएल अवधिज्ञान वडे जघन्यथी अंगुलनो असंख्यातमो भाग, अने उत्कृष्टथी अलोकने विषे लोकप्रमाण असंख्य खंडोने जाणे के अने जुए के. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) जीव केटली लेश्याओमां वर्ततो होय! [उ०] हे गौतम ! ते छ ए लेश्यामां वर्ततो होय छे, ते आ प्रमाणे-कृष्णलेश्या, यावत् शुक्ललेश्या. RAKA For Private and Personal Use Only

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