Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 210
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir NER ९ शतके उद्देश:५ ॥७८०॥ चत्तारि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएण पविसमाणा किं रयणप्पभाए होजा? पुच्छा, गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होजा ७, अहवा एगे रयणप्पभाए तिन्नि सकरप्पभाए व्याख्या होजा अहवा एगे रयणप्पभाए तिन्नि बालुयप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए तिन्नि प्रज्ञप्तिः अहेसत्तमाए होजा ६ अहवा दो रयणप्पभाए दो सकरप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए ॥७८०॥ | दो अहेसत्तभाए होजा १२, अहवा तिन्नि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होजा, एवं जाव अहवा तिन्नि रयण. बाप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा १८, अहवा एगे सकरप्पभाए तिन्नि वालुयप्पभाए होजा, एवं जहेब रयणप्प भाए उवरिमाहिं समं चारियं तहा सकरप्पभावि उपरिमाहिं समं चारेयव्वं ५, एवं एककाए समं चारियव्वं जाव | अहवा तिन्नि तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा १२-६-३-(६३) [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता चार नैरयिको शुं रत्नभामां होय ?-इत्यादि प्रश्न [उ०] हे गांगेय ! ते चारे १ रत्नप्रभामां पण होय, अने यावत् ७ अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. (ए प्रमाणे एकसंयोगी सात विकल्प थया.) १ अथवा एक रत्नप्रभामां अने त्रण शर्कराप्रभामां होय २ अथवा एक रत्नप्रभामां अने त्रण वालुकाप्रभामां होय. ए प्रमाणे यावत् ६ अथवा एक रत्नप्रभामां अने त्रण अधःसप्तम पृथिवीमा होय. (एम ?-३ ना छ विकल्प थया.) १ अथवा बे रत्नप्रभामां अने बे शर्कराप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ६ अथवा वे रत्नप्रभामां अने वे अधःसप्तम पृथिवीमा होय. (ए प्रमाणे बीजी रीते २-२ ना | छ विकल्प थया.) १ अथवा त्रण रत्नप्रभामां अने एक शर्कराप्रभामा होय. ए प्रमाणे यायत् ६ अथवा त्रण रत्नप्रभामा अने एक ASACANSAR CASSACACANCAUSACACK For Private and Personal Use Only

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