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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७६४॥
[प्र०] हे भगवन् ! ते (अश्रुत्वा केवलज्ञानी) ऊर्ध्वलोकमां होय, अधोलोकमां होय के तिर्यग् लोकमां होय ? [उ.] हे गौतम! | ते ऊर्ध्वलोकमां पग होय, अधोलोकमां पण होय अने तिर्यग् लोकमां पण होय. जो ते ऊर्ध्वलोकमां होय तो शब्दापाति, विकटा- 31९ शतके पाति, गंधापाति, अने माल्यवंत नामे वृत्तवैताढ्य पर्वतोमा होय. तथा संहरणने आश्रयी सौमनस्यवनमां के पांडुकवनमा होय. जो उद्देश ते अधोलोकमां होय तो गर्ता-अधोलोकग्रामादिमां के गुफामां होय, तथा संहरणने आश्रयी पातालकलशमां के भवनमां (भवनवासिर ॥७६४॥ | देवोना रहेठाणमां) होय, जो ते तिर्यग्लोकमां होय तो ते पंदर कर्मभूमिमां होय, अने संहरणने आश्रयी अढी द्वीप अने समुद्रोना| एक भागमां होय. (म०] हे भगवन् ! ते (अश्रुत्वा केवलज्ञानी) एक समये केटला होय ? [उ०) हे गौतम ! जघन्यथी एक, बे, त्रण अने उत्कृष्टथी दस होय. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम कडं छे के, केवली पासेथी यावत् सांभळया विना कोइ जीवने केवलिए कहेल धर्म-श्रवणनो लाभ थाय अने केवली पासेथी सांभळया सिवाय कोइ जीवने केवलिप्रणीत धर्म श्रवणनो लाभ न थाय, | यावत् कोइ जीव केवलज्ञानने उत्पन्न करे अने कोइ जीव केवलज्ञानने न उत्पन्न करे. ॥ ३६९ ॥ | सोचाणं भंते ! केवलिस्स वा जाव तपक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए?, गो. | यमा! सोचाणं केवलिस्स वा जाव अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्म एवं जा चेव असोच्चाए वत्तव्वया सा चेव | सोच्चाएवि भाणियव्वा, नवरं अभिलावो सोचेति, सेसं तं चेव निरवसेसं जाव जस्स णं मणपज्जवनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ जस्स णं केवलनाणावरणिज्जाणं कम्माणं खए कडे भवइ से णं सोचाकेवलिस्स वा जाव उवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लब्भइ सवणयाए केवलं बोहिं बुज्झेज्जा जाव केवलनाणं
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