Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 199
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति ॥७६९॥ ९ शतके उद्देश उप ॥ है आपे. [प्र०] हे भगवन् ! तेना प्रशिष्यो पण प्रव्रज्या आपे, दीक्षा आपे ? [उ.] हा, गौतम ! प्रव्रज्या आपे, दीक्षा आपे. [प्र०] माहे भगवन् ! ते (सोचा केवली) सिद्ध थाय, बुद्ध थाय, यावत् सर्व दुःखनो अन्त करे ? [उ०] हा गौतम ! ते सिद्ध थाय, यावत् ६ सर्व दुःखोनो नाश करे. [प्र.] हे भगवन् ! तेना शिष्यो पण सिद्ध थाय, यावत् सर्व दुःखोनो अंत करे ? [उ०] हा, गौतम ! सिद्ध | थाय, यावत् सर्व दुःखोनो नाश करे. [प्र०] हे भगवन् ! तेना प्रशिष्यो पण सिद्ध थाय, यावत् सर्व दुःखोनो अन्त करे ? [उ०] पाए प्रमाणे यावत सर्व दुःखोनो अन्त करे. प्रि०] हे भगवन ! तें (सोचा केवली) शं ऊर्ध्वलोकमां होय-इत्यादि प्रश्न. [उ. जेम 'असोचा' केवली संबंधे का (मू. ३१) ते प्रमाणे जाणवू, यावत् (अढी द्वीव समुद्र के) तेना एक भागमा होय. [H०] हे भगवन् ! है। ते (सोच्चा केवली) एक समयमा केटला होय ? [उ०] हे गौतम! ते एक समयमा जघन्यथी एक, बे के त्रण होय, अने उत्कृष्टथी एक सो आठ होय. माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम कर्तुं छे के, 'केवली पासेथी यावत् केवलिनी उपासिकापासेथी सांभळीने यावत् कोइ जीव केवलज्ञानने उपजावे अने कोइ जीव केवलज्ञानने न उपजावे.' हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. (एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.) । ३७० ॥ भगवत् सुधर्म स्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ९ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. **** K For Private and Personal Use Only

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