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व्याख्या
प्राप्तिः
९ शतके उद्देश ॥७६०॥
॥७६०॥
SACANCELEBA
जइ सवेदए होज्जा किं इत्थीवेयए होज्जा पुरिसवेदए होज्जा नपुंसगवेदए होज्जा पुरिसनपुंसगवेदए होज्जा ?, | गोयमा! नो इत्थिवेदए होजा पुरिसवेदए वा होजा नो नपुंसगवेदए होज्जा ?, पुरिसनपुंसगवेदए वा होला। | [प्र.] हे भगवन् ! ते अवधिज्ञानी जीव केटली लेश्याओमां होय? [उ०] हे गौतम ! त्रण विशुद्ध लेश्याओमां होय. ते आ
प्रमाणे-तेजोलेश्या, पद्मलेश्या अने शुक्ललेश्या. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) जीव केटला ज्ञानोमां होय ? [उ०] हे गौतम! | आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान-ए त्रण ज्ञानोमा होय. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) सयोगी (मनोयोगादिऐ सहित) होय के अयोगी होय ? [उ०] हे गौतम ! ते सयोगी होय पण अयोगी न होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते सयोगी होय,
तो शुं मनयोगी होय, वचनयोगी होय के काययोगी होय ? [उ०] हे गौतम ! ते मनयोगी होय, वचनयोगी होय अने काययोगी पण होय. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते साकार-ज्ञानउपयोगवाळो होय के अनाकार-दर्शनउपयोगवाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! ते साकारउ पगवालो पण होय अने अनाकारउपयोगवाळो पण होय. [प्र.] हे भगवन् ! ते कया संघयणमां होय ? [उ.] हे गौतम ! ते | वज्र ऋषभनाराचसंघयणवाळो होय. [प्र०] हे भगवन् ! ते कया संस्थानमा होय ? [उ.] हे गौतम ! तेने छ संस्थानमांनु कोइ पण एक संस्थान होय. [प्र.] हे भगवन् ! ते केटली उंचाइवाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! ते जघन्यथी सात हाथ अने उत्कृष्टथी
पांचसो धनुषनी उंचाइवाळो होय. [4] हे भगवन् ! ते केटला आयुषवाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! ते जघन्यथी काइक वधारे है आठ वर्ष, अने उत्कृष्टथी पूर्वकोटिआयुषवाळो होय. प्र०] हे भगवन् ! शुं ते वेदसहित होय के वेदरहित होय ? [३०] हे गौतम!
ते वेदसहित होय पण वेदरहित न होय. [म.] हे भगवन् ! जो ते वेदसहित होय तो झुं१ स्त्रीवेदवाळो होय, २ पुरुषवेदवाळो
कार ज्ञानउपयोगण होय. [vo I होय? [] मान्यथी सात
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