Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 177
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailaseagarsuri Gyanmandie प्रबप्तिः ले धि) नवसो ओगण पचास योजनथी काइक न्यून छे. ते द्वीप एक पद्मवरवेदिका अने एक वनखंडथी चारे बाजु विटाएल छे. ए| व्याख्या- बन्नेनुं प्रमाण तथा वर्णन ए प्रमाणे ए क्रम बडे जेम जीवाभिगमसूत्रमा कयुं छे तेम यावत् 'शुद्धदंत द्वीप छे, यावद् हे आयुष्मान् 18| श्रमण ! ए द्वीपना पनुष्यो मरीने देवगतिमां उपजे छे, त्यांसुधी जाणवू ए प्रमाणे पोते पोतानी लंबाइ अने पहोलाइथी अठ्यावीश ॥७४७॥ अंतीपो कहेवा; परन्तु एक एक द्वीपे एक एक उद्देशक जाणवो. ए प्रमाणे बधा मळीने अठयावीश उद्देशको कहेवा. हे भगवन् ! PIते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. [एमकही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे. ॥ ३६४ ।। भगवत् सुर्धमस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ९ मा शतकमां त्रीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. | ९ शतके उद्देश ॥७४७॥ उद्देशक ४ रायगिहे जाव एवं वयासी-असोचा णं भंते ! केवलिस्स वा केवलिसावगस्स वा केवलिसावियाए वा केवलिउवासगस्स वा केवलिउवासियाएवा तप्पविक्वयस्स वा तप्पक्षियसावगस्स वा तप्पक्खियसावियाए वा नप्पक्खियउवासगस्स वा तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्म लभेजा सवणयाए ?, गोयमा! असोचा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्म लभेजा सवणयाए अत्यंगतिए IM केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेजासवणयाए॥ से केणटेणं भंते! एवं बुचइ-असोचा ण जाव नो लभेजा सवणयाए, KAUCTICALCCCCCC365 For Private and Personal use only

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