Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्याप्रति ॥७३७॥
लिच्छेदेहिं आवेढिए परिवेढिते?, गोयमा! नियमा अणंतेहिं, जहा नेरइयस्स एवं जाव वेमाणियस्स, नवरं मणूसस्स जहा जीवस्स। एगमेगस्स णं भंते! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे दरिसणावरणिजस्स कम्मस्स केवतिपहिं ८ शतके एवं जहेव नाणावरणिजस्स तहेव दंडगो भाणियब्वो जाव वेमाणियस्स, एवं जाव अंतराइयस्स भाणियवं, उद्देशः१. नवरं वेयणिजस्स आउयस्स णामस्स गोयस्स एएसिं चउपहवि कम्माण मणूसस्स जहा नेरइयस्स तहा भाणि- ७३७॥ यव्वं, सेसं तं चेव ॥ (सूत्रं ३५८)॥
[प्र०] हे भगवन् ! एक एक नैरयिक जीवनो एक एक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीय कर्मना केटला अविभागपरिच्छेदो वडे आवेष्टित-परिवेष्टित होय ! [उ.] हे गौतम ! अवश्य ते अनन्त अविभागपरिच्छेदो वडे आवेष्टित-परिवेष्टित होय. जेम नैरयिको माटेत कहुं तेम यावद् वैमानिकोने कहेबुं, परन्तु मनुष्यने जीवनी पेठे कहे. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक जीवनो एक एक जीव प्रदेश में दर्शनावरणीय कर्मना केटला अविभागपरिच्छेदो वडे आवेष्टित परिवेष्टित होय ? [उ०] जेम ज्ञानावरणीय कर्मना संबन्धे दंडक कह्यो तेम अहीं पण यावद् वैमानिकने कहेवो, यावत् अन्तरायकर्मपर्यन्त कहे. पण वेदनीय, आयुष , नाम अने गोत्र-ए चार कर्मो माटे | जेम नैरयिकोने कयु तेम मनुष्योने कहे, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणेज जाणवू. ॥ ३५८ ॥ । जस्स णं भंते ! नाणावरणिज्जं तस्स दरिमणावरणिजं जस्स दसणावरणिज्नं तस्स नाणावरणिजी, गोयमा! | जस्स णं नाणावरणिजं तस्स दसणावरणिजं नियमा अस्थि, जस्स णं दरिसणावरणिज्नं तस्सवि नाणावरणिलं नियमा अस्थि । जस्स णं भंते !णाणावरणिज्जं तस्स वेयणिज्जं जस्स वेयणिजं तस्स णाणावरणिजं?, गोयमा!
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