Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 162
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७३२॥ ८ शतके उद्देशः१० ॥७३२॥ 5555 यावत् सर्व दुःखोनो नाश करे; केटलाक जीवोबे भवमां सिद्ध थाय, यावत सर्व दुःखोनों नाश करे अने केटलाक जीवो कल्पोपपन्न देवलोकोमां कल्पातीत देवलोकोमा उत्पन्न याय.[H०] हे भगवन् ! जीव उत्कृष्ट दर्शनाराधनाने आराधी केटला भव कर्या पछी सिद्ध थाय ? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! उत्कृष्ट चारित्राराधनाने आराधी केटला भव कर्या पछी जीवो सिद्ध थाय ? [उ०] पूर्वनी पेठे जाणवू, परन्तु केटलाएक जीयो कला । देवोमां उत्पन्न थाय. [प्र०] हे भगवन ! ज्ञाननी मध्यम आराधनाने आराधी केटला भव ग्रहण कर्या पछी जीव सिद्ध काय, यावत् सर्व दुःखोनो अन्त करे ? [उ०] हे गौतम! केटलाक जीवो बे भव ग्रहण कर्या पछी सिद्ध थाय, यावत् सर्वदुःखोनो नाश करे, पण त्रीजा भवने अतिक्रमे नहीं. [प्र०] हे भगवन् ! जीव मध्यम दर्शनाराधनाने आराधी केटला भव ग्रहण कर्या पछी सिद्ध थाय ? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे चारित्रनी मध्यम आराधनाने माटे जाणवू. ॥ ३५४ ॥ | कतिविहे णं भंते ! पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते?, गोयमा! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तंजहा-वनपरिणामे १ गंधप० २ रसप० ३ फासप०४ संठाणप० ५। वनपरिणामे णं कइविहे पण्णत्ते, गोयमा ! पंचविहे प. ण्णत्ते, तंजहा-कालवनपरिणामे जाव सुकिल्लवनपरिणामे, एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे रसपणामे पंचविहे फासपरिणामे अट्टविहे, संठाणप. भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?, गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-परिम| डलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे ॥ (सूत्रं ३५५)॥ [प्र०] हे भगवन् ! जघन्य ज्ञानाराधनाने आराधी जीव केटला भव ग्रहण कर्या पछी सिद्ध थाय, यावत् सर्वदुःखोनो अन्त ANSAR For Private and Personal Use Only

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