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८ शतके
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६९१॥
उद्देशः८ ॥६९१॥
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है केवतियं कालं उववाएणं विरहिए पन्नत्ते?, गोयमा! जहन्नेणं एक समयं उनोसेणं छम्मासा । सेवं भंते ! सेवं भंते!॥ सूत्रं ३४३ ॥ अट्ठमसए अट्ठमो उद्देसो संमत्तो।।
[म.] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा सूर्यो केटलुं क्षेत्र उंचे तपाचे छे, केटलुं क्षेत्र नीचे तपावे छे अने केटलुं क्षेत्र तिर्यग् तपावे छे? [उ.] हे गौतम ! सो योजन क्षेत्र उंचे तपावे छे, अढारसो योजन क्षेत्र नीचे तपाबे छे. अने सूडताळीश हजार बसे श्रेसठ योजन तथा एक योजनना साठीया एकवीस भाग जेटलं क्षेत्र तिर्यग् (तिरछु) तपावे छे. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्योत्तर पर्वतनी अंदर जे चंद्रो, सूर्यो, ग्रहगण, नक्षत्र अने तारारूप देवो छे, हे भगवन् ! ते शुं ऊर्ध्वलोकमां उत्पन्न थयेला छे ? [उ०] जे प्रमाणे जीवाभिगमसूत्रमा का छे तेम यावद् (तेओनो उपपातविरहकाल-उपजवान अन्तर जघन्य एक समय अने) यावद् उत्कृष्ट छ मास के त्यांसुधी बधुं जाणवं. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्योत्तर पर्वतनी बहार जे चंद्रादि देवो छे तेओ शु ऊर्ध्वलोकमां उत्पन्न थयेला छे ? [उ०] जेम जीवाभिगमसूत्रमा कयुं छे तेम जाणवू, यावत्-[प्र०] 'हे भगवन् ! इन्द्रस्थान केटला काल सुधी उपपात वडे विरहित कह्यु छ ? [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी छ मास, (अर्थात् एक इन्द्रना मरण पछी जघन्यथी एक समये अने उत्कृष्टथी छ मासे तेने स्थाने वीजो इन्द्र उत्पन्न थाय छे तेथी तेटलो काळ इन्द्रस्थान उपपात विरहित होय छे',) हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ते एमज छे. (एम कही भगवन् गौतम यावद् विहरे हे). ।। २४३ ॥
भगवत् सूधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीयंत्रना आठमा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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