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जीव (औदारिक शरीरतो) बन्धक छे. तो शु देशबन्धक छे के सर्वबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम! ते देशबन्धक पण के अने सर्वव्याख्या
| बन्धक पण छे. [म.] ते जीव शु वैक्रियशरीरनो बन्धक छ के अबन्धक छ ? [उ.] पूर्वनी पेठे जाणवं, ए प्रमाणे आहारक शरीर 51८ शतके प्रज्ञप्ति माटे पण जाणवू. [प्र० ते जीव शुं कार्मण शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छ ? [उ०] हे गौतम ! बन्धक छे, पण अवन्धक नथी. उद्देशः ९ ॥७२६॥ [प्र०] जो ( कार्मण शरीरनो) बन्धक छ तो शुं देशबन्धक छे के सर्वबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम ! देशबन्धक छ, पण सर्वबन्धक ॥७२६॥
31 नथी. [प्र.] हे भगवन् ! जे जीवने कार्मणशरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिकनो बन्धक छे के अबन्धक छ ? [उ०] जेम
तेजसशरीरनी वक्तव्याता कही, तेम कार्मण शरीरनी पण वक्तव्यता कहेवी, यावत् तैजसशरीरनो देशबन्धक छ, पण सर्वबन्धक नथी. ।। ३५१॥
एएसि णं भंते ! सब्बजीवाणं ओरालियवेउब्वियआहारगतेयाकम्मासरीरगाणं देमबंधगाणं सब्वयंधगाणं | अबंधगाण य कपरे २ जाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सम्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सव्वयंधगा १ तस्स चेव देसबंधगा संखेनगुणा २ वेउब्बियसरीरस्स सब्वबंधगा असंखेजगुणा ३ तस्स चेव देसबंधगा असं| खेजगुणा ४ तेयाकम्मगाणं दुण्हवि तुल्ला अबंधगा अणंतगुणा ५. ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अणंतगुणा ६
तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया ७ तस्स चेव देसबंधगा असंखेनगुणा ८ तेयाकम्मगाणं देसबंधगा विसेसालहिया ९ वेउब्वियसरीरस्म अबंधगा विसेसाहिया १० आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया ११। सेवं भंते ! iP२॥ सूत्रं.(३५२) अट्टमसयस्स नवमो उद्देसओ संमत्तो-॥-८-९॥
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