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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
।।७२५॥
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भाणि जाये कम्मगस्स । जस्स णं भंते! तेयासरीरस्स देमबंधे से णं भंते ! ओरालियमरीरस्स किं बंधए अबंधए !, गोयमा ! बंधए वा अबंधड़ था, जह बंधए किं देशबंधए संबंध १, गोयमा ! देसंबंधए वा सव्वबंधए वा, बेउव्वियसरीस्स किं बंधर अबंध ? एवं चैव, एवं आहारगसरीरस्सवि, कम्मगसरीरस्स किं बंधए अबंधर ?, गोयमा ! बंधर नो अबंध, जइ बंधए किं देसबंध सव्वबंधए १. गोगमा ! देमबंध मो मव्वबंध । जस्स णं भंते! कम्मगसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! ओरालिय सरीरस्स जहा तेयगस्स वत्तंव्वया भणिया तहा कम्मगस्सवि भाणिपव्वा जाव तेयासरीरस्मं जाव देसबंधए नो सव्वबंधए ।। ( सू ३५१ ) ॥
[प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने वैपिशरीग्नो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम ! बन्धक नथी, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे जेम (वैक्रियशरीरना) सर्वबंधना प्रसंगे क तेम अहीं देशबन्धना प्रसंगे पण यावत् कार्मणशरीर सुधी कहेतुं [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीवने आहारकशरीरनो सर्वबन्ध होय ते जीव शुं औदारिकशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम! बन्धक नथी. पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे वैक्रियशरीरने पण जाणवुं अने जेम तेजस अने कार्मण शरीरने औदारिक शरीर साथै कनुं तेम (आहारक शरीर साधे पण) कहे. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने आहारक शरीग्नो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक के ? [उ०] हे गौतम! जेम आहारक शरीरना सर्वबन्ध साथै कशुं के तेम देशबन्धनी साथै पण यात्रत् कार्मणशरीर सुधी कहेतुं [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीवने तैजसशरीरनो देशबन्ध के ते जीत्र शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम! बन्धक पण छे. अने अबन्धक पण छे. [प्र०] जो ते
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८ शतके
उद्देशः ९ ॥७२५॥