Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७०४॥
उद्देशः९
CREASOORAKAR
होय छे. देशबन्धनुं अन्तर जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी अंतर्मुहूर्त सुधीर्नु छे. [प्र०] पृथिवीकायिक एकेन्द्रियना औदारिकशरीरसंबंधे मश्न..उ] हे गौतम! ते भोना सर्वबन्धनु अन्तर जेम एकेन्द्रियाने कडं तेम कहेवू; अने देशबन्धन अन्तर जघन्यथी
131८शतके एक समय, अने उत्कृष्टथी त्रण समय सुधीर्नु होय छे. जेमपृथिवीकायिकने कयुं तेम वायुकायिक सिवाय यावत् चउरिन्द्रिय सूधीना जीवोने जाणवं, पण उत्कृष्टयी सर्वबन्धनुं अन्तर जेटली जेनी आयुष्यस्थिति हाय तेटली एक समय अधिक करवी. (अर्थात् सर्वव
७०४॥ न्ध अन्तर समयाधिक आयुष्यनी स्थिति प्रमाणे जाणवू.) वायुकायिकना सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी त्रण समय न्यून क्षुल्लक भव, अने उत्कृष्टथी समयाधिक त्रणहजार वर्ष सुधी जाणवू. तेओना देशबन्धनुं अन्तर जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी अंतर्मुहूर्त | पर्यन्त जाणवू. [१०] पंचेन्द्रियतियंचना औदारिकशरीरचन्धना अन्तर संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेभोना सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी त्रण समय न्यून क्षुल्लक भवपर्यन्त, अने उत्कृष्टथी समयाधिक पूर्वकोटि होय छे. देशबन्धनुं अन्तर जेम एकेन्द्रियोने का छे ते प्रकारे सर्व पंचेन्द्रिय तियेचोने जाणवू. ए प्रमाणे मनुष्योने पण समग्र जाणवू, यावत् उत्कृष्टथी अंतर्मुहूर्त छे. [प्र०] हे भगबन् ! कोइ जीव एकेन्द्रियपणामां होय, अने पछी ते एकेन्द्रिय सिवाय बीजी कोड जातिमा जाय, अने पुनः एकेन्द्रियपणामां आवे | तो एकेन्द्रियौदारिकशरीरप्रयोगबन्धनुं अन्तर कालधी केटलुं होय? [उ०] हे गौतम! जघन्यथी सर्वबन्धन अन्तर त्रण समय न्यून वे शुल्लक भव, अने उत्कृष्टथी संख्याता वर्ष अधिक बेहजार सागरोपम छे. तथा देशबन्धनुं अन्तर जघन्यथी एक समय अधिक क्षुल्लक भव, अने उत्कृष्टथी संख्यात वर्ष अधिक बेहजार सागरोपम छे.
जीवस्सणं भंते ! पुढविकाइयत्ते नोपुढविकाइयत्ते पुणरवि पुढधिकाइयत्ते पुढविकाइयएगिदियओरालियसरी
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