Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 139
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७०९॥ GAASARA** [उ०] हे गौतम ! ते देशबन्ध पण छे अने सर्वबन्ध पण छे. ए प्रमाणे वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियशरीरपयोगबन्ध तथा रनमभाषाथ| वीनरयिकवैक्रियशरीरमयोगबन्ध जाणवो. ए प्रमाणे यावद् अनुत्तरौपपातिक देवी सुधी जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरमयोगबन्ध कालथी क्यां सुधी होय? [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्ध जघन्यथी एक समय, अमे उत्कृष्टथी चे समय मुधी होय. तथा देशव- ८ शतके न्ध जघन्यथी एक समय, अने उत्कुष्टथी एक समय न्यून तेत्रीश सागरोपम मुधी होय.[H०] वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयो उद्देशः२ गबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्ययी एक समय अने उत्कृष्टथी अन्तर्मुहूर्त सुधी होय छे. ॥७०९॥ रयणप्पभापुढविनेरहय पुच्छा, गोयमा सव्वबंधे एक समयं, देसबंधे जहन्नेणं दसवाससहस्साई तिममयऊणाई | उक्कोसेणं सागरोवमं समऊण, एवं जाव अहेसत्तमा, नवरं देसबंधे जस्स जा जहनिया ठिती सा ति समऊणा कायब्वा जस्स जा उकोसा सा समयूणा॥ पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण मणुस्माण य जहा वाउकाइयाणं । असुरकु-। मारनागकुमार० जाव अणुत्तरोववाइयाण जहा नेरइयाणं, नवरं जस्स जा ठिई सा भाणियब्वा जाव अणुत्तरोववाइयाण सव्वबंधे एक समयं, देसबंधेजहन्नण एक्कतीसं सागरोवमाई तिसमऊणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई समऊणाई ॥ वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधंतरे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होड ?. गोयमा ! सब्वयंधतरं जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं अणतं कालं अणंताओ जाव आवलियाए असंखेजइभागो, एवं देमबंधतरंपि ॥ | [प्र०] रत्नप्रभानैरयिक वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्यथी *त्रण समय उणा दशहजार वर्ष सुधी होय, तथा उत्कृष्टथी एक समय न्यून एक सागरोपम सुधी होय. ए प्रमाणे यावत् नीचे सातमी || CARRIERGARH For Private and Personal Use Only

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