Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥७०१ ॥
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ओरालिय सरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे सव्वबंधे ?, गोयमा ! देसबंधेवि सव्वबंधेवि, एगिंदियओ. रालिय सरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे सव्वबंधे १, एवं चेव, एवं पुढविकाइया, एवं जाव मणुस्सपंचिंदियओरालिय सरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देसबंधे सव्वबंधे ?, गोयमा ! देसबंधेवि सव्वबंधेवि ॥ ओरालिग सरीरध्वयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ?, गोयमा ! सव्वबंधे एक समय, देसबंधे जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं तिनि पलिओ माई समयऊणाई, एगिंदिय ओरालिय सरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होड़ ?, गोयमा ! सव्वबंधे एकं समयं देसबंधे जहन्नेर्ण एकं समयं उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साइं समऊणाई, पुढविकाइयए गिंदिपुच्छा, गोयमा ! सव्वबंधे एकं समयं देसबंधे जहन्नेणं खुड्डागभवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं समऊणाई, एवं सव्वेसिं सव्वबंधो एक्कं समयं देसबंधो जेंसिं नत्थि वैउब्वियसरीरं तेसिं 'जहनेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं जा जस्स ठिती सा समऊणा कार्यव्वा, जेसिं पुण अस्थि उब्वियसरीरं तेसिं देसबंधो जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं जा जस्म किती सा समऊणा कायव्वा जाब मणुस्साणं देसबंधे जहनेणं एक समयं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओदमाई समयूणाई ॥ .
[प्र०] हे भगवन! औदारिकशरीरप्रयोग बन्धनो शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे ? [उ०] हे गौतम! देशबन्ध पण छे अने सर्व [] केन्द्रियदारिकशरीर प्रयोगवन्ध थुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध है ? [30] पूर्वनी पेठे जाण, पु प्रमाणे व यावत्] [प्र० ] हे भगवन् ! मनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरे प्रयोग बन्धनों शुदेशबन्ध छे के सर्वबन्ध छ ? [ॐ०] है गौतम ! देशबन्ध
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८ शतके
उद्देशः ९ ॥७०१ ॥

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